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याद आता है

शरद सिंह “शरद”
लखनऊ

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तेरा यमुना तट पर वंशी बजाना,
और मेरा अपलक तुझे निहारना,
याद आता है कान्हा।
मिले थे जब हम कदम्ब की छाँव मे,
तमन्ना थी समा जाऊँ आगोश मे,
तेरे कहे शब्द “आऊँगा जल्दी ही”,
गूँजते हैं हर पल इन कानो मे,
वादा कर छोड़ दिया तन्हा फिर,
नयन बरसे यूँ ज्यों घटा बरसे घिर घिर
हर बात पर विश्वास किया हमने,
हर बार वादा कर तोडा़ तुमने,
हर आहट पर नजरे उठा करती है,
हो के मायूस फिर जम के बरसा करती हैं।

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लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने “मेरी स्मृतियां” नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है।


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