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देखता रहता हूँ मैं छत से तुम्हें देर तलक

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रचयिता : मुनीब मुज़फ्फ़रपुरी

याद आजाए तो एक बार बता भी देना
शहर तो देख लिया दिल का पता भी देना
मेरी आँखों ने तुम्हें देख लिया है यारा
पास अजाऊँ तो आवाज़ सुना भी देना
देखता रहता हूँ मैं छत से तुम्हें देर तलक
ऐसे मौक़ों पे कभी हाथ हिला भी देना
ये बड़ा काम है इसका भी अजर पाओगे
रह चलते हुए पत्थर को हटा भी देना
बेज़बाँ को भी शजर याद तो आता होगा
यार पिंजरे से परिंदो को उड़ा भी देना
हर घरी चुप नही रहना ज़रा मूनीब सुनो
ज़ुल्म होता हो तो आवाज़ उठा भी देना
लेखक परिचय :
नाम: मुनीब मुजफ्फरपुरी
उर्दू अंग्रेजी और हिंदी के कवि
मिथिला विश्वविद्यालय में अध्ययनरत, (भूगोल के छात्र)।

निवासी :- मुजफ्फरपुर

कविता में पुरस्कार :-
१: राष्ट्रीय साहित्य सम्मान
२: सलीम जाफ़री अवार्ड
३: महादेवी वर्मा सम्मान
४: ख़ुसरो सम्मान
५: बाबा नागार्जुना अवार्ड
६: मुनीर नियाज़ी अवार्ड

आने वाली किताबें :-
१: माँ और मौसी (उर्दू और हिंदी ग़ज़ल)
२: रिदम की दुनिया (अंग्रेजी कविता)
३: भूत नाथ रिटर्न (अंग्रेजी उपन्यास)


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