रचयिता : शरद जोशी “शलभ”
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पलट गया हूँ मैं
तमाम रिश्तों से नातो से कट गया हूँ मैं।
निकल के दुनिया से ख़ुद में सिमट गया हूँ मैं।।
किसी की चाह न बाक़ी न राबता बाक़ी।
तलब की राह से अब दूर हट गया हूँ मैं।।
ये रोशनी तो दिया बुझने के क़रीब की है
दिये के तेल से घट- घट के घट गया हूँ मैं।।
किसी भी शक्ल में घर लौटना नहींं मुमकिन।
हज़ारों लाखों करोड़ों में बट गया हूँ मैं।।
पलट के जाना था इक दिन ख़ुदा की सम्त”शलभ”
कि आज ही से उधर को पलट गया हूँ मैं।।
परिचय :- धार जिला धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी “शलभ” कवि एवंं गीतकार हैं।
विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल।
आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं।
म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आप सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, अखिल भारतीय साहित्य परिषद धार (म.प्र.) के जिला अध्यक्ष हैं व वर्तमान में साहित्य सेवा में निरंतर संलग्न हैं।
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