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मैं हूँ अपनी हिन्दी भाषा

माधुरी व्यास “नवपमा”
इंदौर (म.प्र.)

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अपने मन के उद्गारों को,
भावों और अभावों को,
पावन कर अपने विचारों को,
देकर मेरी अविरल धारा।
पूरी कर लो अभिलाषा,
मैं हूँ सरल सबल परिभाषा,
मैं हूँ अपनी हिंदी भाषा।

अपने बौद्धिक विकास में,
मेरे आदान-प्रदान से,
अज्ञान-अंधकार को मेटो,
मेरा प्रकाश पुंज है सारा।
मिटा लो पूरी ज्ञान पिपासा,
मैं हूँ सरल सबल परिभाषा,
मैं हूँ अपनी हिंदी भाषा।

जब करोगे मेरा सम्म्मन,
जितना दोगे मुझको मान।
अम्बर सा प्रसारित होगा,
जग में अपने देश का ज्ञान।
पूरण करूँ सारी आकांक्षा,
मैं हूँ सरल सबल परिभाषा,
मैं हूँ अपनी हिंदी भाषा।

बंगाली,पंजाबी हो या सिंधी,
सबके भाल की मैं हूँ बिंदी।
संस्कृत सब बोलियों की माता,
मैं बनी सबकी भाग्य विधाता।
अब ना करो मेरी उपेक्षा,
मैं हूँ सरल सबल परिभाषा,
मैं हूँ अपनी हिंदी भाषा।

परिचय :- माधुरी व्यास “नवपमा”
निवासी – इंदौर म.प्र.
सम्प्रति – शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत)
शैक्षणिक योग्यता – डी.एड ,बी.एड, एम.फील (इतिहास), एम.ए. (हिंदी साहित्य)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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