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मैं मंजिल हूँ तुम्हारी

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दीपक्रांति पांडेय
(रीवा मध्य प्रदेश)

मैं मंजिल हूँ तुम्हारी, ये सच है, इसे तुम मान लो,
मैं पहली और आखरी ख्वाइश हूँ, तुम्हारी, जान लो,

मैं तुम्हारी ताकत हूँ, ताकत और हौंसला भी,
किसी भी कसौटी में परख कर, इसे मान लो,
नाराजगी, झगड़े, और दूरियाँ ना टिकेंगी हमरे बीच,
अधूरे हो मेरे बिन तुम, हकीकत है इसे पहचान लो,

सच्चे प्यार की ताकत को वक्त रहते पहचान लो,
दुनियाँ ने जो तुम्हें बताया, वो तुमने मान लिया,
दूसरों ने जो मंजर दिखाया उसे सच जान लिया,
खुद की आंखें खोलो और सच को खुद जान लो,

फ़र्क होता है बहुत, सच और झूठ के बीच,
बस इसी सूक्ष्म फ़र्क को देखो, पहचान लो,
नमी मेरे निगाहों से, छलकती है अगर हरपल,
हो खुश कैसे, दिले हालत से पूँछो, और जान लो,

मैं हूँ अकेली और तन्हा, ज़िन्दगी के सफर में तो,
हो भीड़ में तन्हा तुम भी, खुद से पूछो ये जान लो,

मैं मंजिल हूँ तुम्हारी,ये सच है, इसे तुम मान लो,
मैं पहली और आखिरी ख्वाइश हूँ, तुम्हारी,जान लो,

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लेखिका परिचय :-  दीपक्रांति पांडेय रीवा मध्य प्रदेश


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