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मजदूर की बेटी हूं

बाबुलाल सोलंकी
रूपावटी खुर्द जालोर (राजस्थान)

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मैं आप की तरह पत्थर नही
जिंदादिल इंसान हूं !
ईंट से कोमल हूं !
पर चट्टान से मजबूत क्योंकि
मैं चट्टान तोड़ती हूं !
मैं ईंट पत्थर की चोट से
नही डरती क्योंकि-
मजदूर की बेटी हूं !
मैं डरती हूं महल वालो की
लाल आंखे ओर डांट से क्योंकि-
कंही उनकी नारजगी
शाम का चूल्हा ठंडा न कर दे !
मैं महलो में नही रहती
पर महल बनाती हूं !
ईंट पकाती हूं! बनाती हूं !
मेरी कोमलता गर्म भट्टी में
ईंट सेंकते पक गई है।
सिवाय हृदय, सब कठोर है।
आप संगमरमर से सजे
महलो में सोते है ! रहते है !
हम संगमरमर के शेष टुकड़ो पर
अपनी रात बिताते है।
तुम अपने बच्चो को
प्यार से बांहों में नही उठाते।
उससे ज्यादा हम ईंट गोदी में
संभाल के रखते है क्योंकि-
एक ईंट का टूटना हमारे लिए
बहुत कुछ तोड़ सकता है जैसे-
आबरू, खाना,रोजी, सपने,
हमारे लिए घर आंगन नशीब कँहा है ?
जंहा भी माँ काम पर है, उसी ठौर
आसमा को जमी पर उतार लाते है ।
वन्ही आंगन देहरी सजा देते है ।
तुम्हारे महलो के जूठन से हम भी
होली दिवाली मना लेते है ।
तुम ईंटो से महल बना सकते हो,
हम छोटा सा घरौंदा भी नही ।
क्योंकि महल मेहनत से नही
मिल्कियत से खड़े होते है ।
कहते है मिल्कियत मक्कारी से
से कमाई जाती है ओर मैं !
मजदूर की बेटी हूं !
मैं मेहनत कर सकती हूं !
मक्कारी नही ! इसलिए –
आसमा को छत,धरती बिछोना
ओर दर्द की दीवार बना कर
हर रोज नया मकान बना लेती हूं।

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परिचय :
बाबुलाल सोलंकी
रूपावटीखुर्द जालोर (राजस्थान)
जन्मतिथि – २० जून १९७६
स्नातक – हिंदी साहित्य
स्नातकोत्तर – राजनीतिविज्ञान महर्षि दयानंद सरस्वती विश्विद्यालय अजमेर


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