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मैं ही मैं हूं

जितेंद्र शिवहरे
महू, इंदौर

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मैं महान हूं
मुझे समझना होगा तुम्हें
अपने अभिमान को परे रख
मेरी हर बात सुनो तुम
तुम क्या हो?
मेरे आगे
तुम्हारी कोई अस्तित्व नहीं मेरे आगे
मेरी धन-वैभव-संपदा को देखो
तुम्हारे पास भी होगा सबकुछ
किन्तु मेरे जितना नहीं
इन प्रसाधन की गुणवत्ता और मात्रा
तुमसे कहीं अधिक है
मेरे संसाधन आलौकिक है
इन्हें साष्टांग प्रणाम करो
मेरा घर, घर नहीं एक महल है
तुम्हारे पास भी होगा
किन्तु मेरे जितना भव्य नहीं
तुम्हारी राय का कोई मुल्य नहीं
तुम्हारी में कभी नहीं सुनूंगा
मेरा ज्ञान सर्वज्ञ है
तुम जानते ही कितना हो?
तुम्हारा ज्ञान शुन्य है
मेरे आगे
मेरी महत्ता सार्वभौमिक है
तुम नगण्य हो
तुम शून्य हो
और मैं अनंत
मेरी संतान ही संसार का कल्याण करेगी
क्योंकी वो मेरा अंश है
इसलिए वो भी महान है
उसका किसी से कोई मुकाबला नहीं
वो सर्वशक्तिमान है
मेरी तरह वह भी प्रार्थनीय है
ईश्वर का सर्वाधिक कृपा पात्र मैं हूं
क्योंकी मेरे पास सबकुछ है
अतएव मैं ईश्वर का प्रतिनिधि हुआ
मेरी ईच्छा को आज्ञा मानो
मैं भूखों को भोजन खिलाता हूं
अनाथों का नाथ मैं ही हूं
यदि मेरी कृपा हो जाए तो गूंगे बोलने लगे
क्योंकी मेरे पास धन-बल की शक्ति है
संसार का सारा ऐश्वर्य मेरे पास है
सभी सुविधाओं का मैं सर्वथा योग्य हूं
जिन्हें तुम केवल कल्पना में देख पाते हो
मेरे यह सभी गुण मुझे मानव से
ऊंचा और ऊंचा बनाते है
तुम मुझे ईश्वर मान सकते हो
तुम्हारी इच्छाएं मैं पुरी कर सकता हूँ
क्योंकि मैं महान हूं
मैं महान हूं
सर्वत्र केवल
मैं ही मैं हूं।

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परिचय :-  जितेंद्र शिवहरे आपकी आयु – ३४ वर्ष है,  इंदौर निवासी जितेंद्र शा. प्रा. वि. सुरतिपुरा चोरल महू में सहायक अध्यापक के पद पर पदस्थ होने के साथ साथ मंचीय कवि भी हैं, आपने कई प्रतिष्ठित मंचों पर कविता पाठ किया है।


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