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रचयिता : रीतु देवी
पंछी बन मैं डाल-डाल उड़ती हूँ ,
प्रगति रथ पर चढ अग्रसर होती हूँ,
जमाने की बंदिशें रोक न सकती,
पिंजरे में कैद हो न सकती,
हिन्दुस्तान देश की मैं नाज हूँ ,
बाँध सके न कोई मैं आजाद हूँ।
नील गगन को चूमने चली हूँ ,
ऊँचे शिखर चढने चली हूँ ,
अनंत शक्ति है मेरे बाँहों में
रोड़ें हटाकर आगे बढूँ राहों में
घर-आँगन संगीत की मैं साज हूँ ,
बाँध सके न कोई मैं आजाद हूँ।
करती रहती हूँ नव-क्रांति की आगाज,
संग मेरे है अरबों भारतीयों की बुलंद आवाज,
शिक्षा की पाठ पढ लौ जलाने चली हूँ ,
इंसानियत की पाठ पढने -पढाने चली हूँ ,
मिली है मुझे तीव्र गति मैं बाज हूँ ,
बाँध सके न कोई मैं आजाद हूँ।
विचार अभिव्यक्ति करने की मिली है स्वतंत्रता,
फूल से अंगार बन करूँगी दमन सभी परतंत्रता ,
कार्य करने की है मुझमें असीम उर्जा ,
बनना है मुझे राष्ट्र का नवीन सूर्या ,
माता-पिता संग राष्ट्र की दुलारी प्रिया लाज हूँ ,
बाँध सके न कोई मैं आजाद हूँ।
लेखीका परिचय :- नाम – रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार
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