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मैं एक पौधा हूं

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

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मैं एक पौधा हूं बेसहारा हूँ
खाद उर्वरक की कमी से गुजरा हूँ
मरूभूमि की खजूर सा लंबा शरीर वाला
मतवाला हूँ ताड़ सा
शब्द ब्रह्म का नशा देने वाला हूँ
अगर मेरे नशा को पीकर
कोई बनता मतवाला हो
कल्पना की महानद मे
गोता लगाने वाला हो
आ जाए मेरे पास
मैं वह परम तत्व देने वाला हूँ
अप्प दीपो भव का वैराग्य देने वाला हूँ
किसी बुद्ध की खोज में बेसहारा हूँ
बोधि वृक्ष मैं बन पाऊं
ऐसी मेरी कामनाएं है भावनाएं हैं
मैं एक पौधा हूं बेसहारा हूँ
पूनम की सर्द रात्रि में सत्य देने वाला हूँ
शांति सौभाग्य का छाहँ देने वाला हूँ
हर दिलो में है दुखों के गागर भरे
मैं पी रहा हूं ग़मों के प्याले ने धीरे धीरे
शून्य से उतर कर आ रही है सुजाता
पुनः अमृत रूपी खीर की थाली लिए धीरे-धीरे

परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला – पूर्वी चंपारण (बिहार)
सम्मान – राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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