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चंद लम्हो का हूँ मेहमान

दामोदर विरमाल
महू – इंदौर (मध्यप्रदेश)

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चंद लम्हो का हूँ मेहमान चला जाऊंगा।
में हूँ दुनिया से परेशान चला जाऊंगा।

ढूंढता रहता हूँ अक्सर एक पल सुकून का।
जवाब देने लगा अब कतरा कतरा खून का।
भीड़ दुनिया की मुझे रास नही आती है।
अब तो खुशियां भी मेरे पास नही आती है।।
करके अपनों को मैं हैरान चला जाऊंगा…

चंद लम्हो का हूँ मेहमान चला जाऊंगा।
में हूँ दुनिया से परेशान चला जाऊंगा।

करता रहता हूँ सफ़र रात दिन कमाने को।
लोग पीछे पड़े ज़िन्दगी की जंग हराने को।।
फिर भी रुकता नही मैं कभी थकता नही।
चंद रुपयों के लिए मैं कभी बिकता नही।।
करके तेरी गली सुनसान चला जाऊंगा…

चंद लम्हो का हूँ मेहमान चला जाऊंगा।
में हूँ दुनिया से परेशान चला जाऊंगा।

दिल के हालात बयां करने को अल्फ़ाज़ नही।
मेरी ये ज़िन्दगी किसी की मोहताज़ नही।।
मैं तो हूँ खुद्दार बड़ी शान से रहना है मुझे।
बेहरहम दुनिया से बस यही कहना है मुझे।।
करके खाली तेरा मकान चला जाऊंगा।

चंद लम्हो का हूँ मेहमान चला जाऊंगा।
में हूँ दुनिया से परेशान चला जाऊंगा।

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परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं ग़ज़ल व गीत लिखे गए है, जो आये दिन अखबारों में प्रकाशित होते रहते है। गायन के क्षेत्र कराओके गीत गाने में आप खासी रुचि रखते है।


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