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पाखंड

डॉ. उपासना दीक्षित
गाजियाबाद उ.प्र.

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सदियों से अपरिभाषित
न कोई आकार
न कोई प्रकार
बेढंगे साँचों में
पोषित और साकार
अव्यक्त चीत्कारों में
चहकता पाखंड
कलुषता की भट्टी में
दहकता पाखंड।
व्यक्ति अनेकों खड़े
चेहरों पर परत चढ़े
कुटिल मुस्कानों की
चमक लिए आगे बढ़े
सादगी के चोले में
छिपा हुआ पाखंड
बात की सहजता का
दंभ भरता पाखंड।
काया की उन्मुक्तता
भावों की गम्भीरता
पाप का संसार और
घृणित घोर कामना
बहुरंगी माया का
जाल बना पाखंड।
जिधर देखो,
उधर दिखे
प्रेम का पाखंड
सत्य का पाखंड
संस्कारी पाखंड
व्यभिचारी पाखंड
ममता का पाखंड
गुरूता का पाखंड
आदर का पाखंड
लज्जा का पाखंड
मित्रता का पाखंड
शब्दों की कमी भले
पर बहुआयामी पाखंड
कलियुगी माया में
और चिरन्तन काया में
फलता-फूलता और बढ़ता
बहुमुखी पाखंड।

परिचय :- डॉ. उपासना दीक्षित
जन्म – ३० दिसंबर १९७८
पिता – स्व. ब्रजनन्दन लाल मिश्रा
माता – स्व. श्यामा मिश्रा
शिक्षा – एम. ए हिन्दी, पी. एच. डी
निवासी – गाजियाबाद उ.प्र.
शोध विषय – धूमिल की कविता में युग चेतना
प्रकाशन – शोध समीक्षा मूल्यांकन, शोध सरिता, शोध मंथन, इन्नोवेशन द रिसर्च काॅन्सेप्ट, समकालीन हिन्दी कविता एक अंतर्यात्रा, जनसंचार माध्यम पत्रकारिता परिप्रेक्ष्य एंव सम्भावनायें, कोरोना काव्य संग्रह आदि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशन।
संप्रति – अस्सिटेंट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, इंग्राहम इंस्टीट्यूट गर्ल्स डिग्री कॉलेज, गाजियाबाद उ.प्र.
घोषणा पत्र – मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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