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प्यार का भूखा

राजनारायण बोहरे
इंदौर मध्य प्रदेश
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रिंकू को तेज बुखार था और वह बिस्तर पर अकेला रो रहा था। सुबह जब उसके पापा अपने दफ्तर जाते समय रोज की तरह रिंकू के कमरे में आये तो पापा से बड़े दबे से अंदाज में उसने कहा था- ’’पापा मुझे कल रात से बहुत तेज बुखार है। प्लीज आज आज आप घर पर रहिये
न।’’
पापा ने हमेशा की तरह उसकी प्रार्थना को ठुकरा दिया था- ’’नो रिंकू, इस तरह कमजोर नहीं बनते। तुम्हें मजबूत बनना है- एकदम स्ट्रांग। ये छोटे मोटे बुखारों से भला क्या घबराना। आज मेरे ऑफिस में बहुत जरूरी मीटिंग है, इसलिये मैं घर पर नहीं रूक पाऊंगा।’’

’’लेकिन पा ’’….कुछ कहने का प्रयास करते रिंकू की बात काटते पापा बोले थे- ’’मैंने फोन कर दिया है। डॉक्टर अंकल तुम्हें दवा दे जायेंगे। घर के दोनों नौकर तुम्हारी सेवा में पहले से ही तैनात हैं न।’’ यह कहकर पापा चले गये तो कम्बल में मुँह छिपाकर रिंकू रो पड़ा। मम्मी से तो वह पहले से ही डरता है। पापा से कुछ कहने की हिम्मत हो जाती है, इसलिये उसने पापा को टोका था। पर पापा नहीं रूके। कुछ देर में मम्मी भी अपने दफ्तर चली जायेगी। फिर दिन भर के लिये रिंकू अकेला घिरा रह जायेगा इस घर में। दिन भर क्या, यूं तो वह चौबीसों घंटे अकेला ही रहता है अपने कमरे में। दफ्तर से थके-मांदे लौटे पिता और माँ केवल हाल-चाल पूछने आते उसके पास, और तुरन्त ही लौट जाते हैं।

माँ-बाप दोनों नौकरी करते हैं,उन्हे पहला स्थान अपनी नौकरी के लिए है बाकी सब बाद में है। इसलिये अपने बेटे रिंकू के लिये दोनों के पास कोई समय नहीं है। यह याद करके रिंकू रो पड़ा। मम्मी भी तैयार होकर उसके पास आयीं और ‘ वाय वाय ’ करके अपने दफ्तर चली गई, तो वह मायूस सा होकर डॉक्र अंकल का इंतजार करने लगा।

ठीक बारह बजे डॉक्टर अंकल आये। चैक अप करके रिंकू को एक इंजेक्शन लगाके वे वापस चले गये तो रिंकू को अचानक ही घबराहट होने लगी। उसके फिर से आंसू निकल पड़े । वह हिलकियां भर भर के रोने लगा। दीनू और किसना दोनों नौकर उसके पास आकर बैठ गये और उसे चुप कराने का यत्न करते रहे, पर रिंकू को धीरज नहीं बंध रहा था। बाद में वह चुप हुआ तो उसने दीनू और किसना को अपने-अपने काम करने भेज दिया । वह नहीं समझ पा रहा था कि उन लोगों से क्या बात करें। एक बजे तक उसका बुखार कुछ कम हुआ। उसे लगा कि वह अब ठीक है। चाहे तो अपने स्कूल भी जा सकता है। वह फुर्ती से उठा और अपनी स्कूल की ड्रेस पहनने लगा। दोनों नौकर समझाते रहे, परवह न माना। सायकिल उठाकर वह स्कूल की तरफ चल पड़ा।

स्कूल पहुंचते-पहुंचते वह थक गया था। उसका सारा शरीर पसीने से तर-बतर हो रहा था। साईकिल स्टैण्ड पर सायकल रखके उसने एक तरफ अपना बस्ता फेंका और वहीं जमीन पर बैठ गया। कुछ देर बाद प्रिंसीपल सर जाने कहाँ से घूमते घामते वहाँ अचानक आ पहुंचे तो उसे जमीन पर बैठा देखकर कुछ नाराज हुये- ’’डर्टी बॉय ! यहाँ क्यों बैठे हों ?’’ रिंकू का गला सूख रहा था, बड़ी कठिनाई से वह सिर्फ इतना बोल सका-’’सर मुझे बुखार है।’’ फिर वह रो पड़ा। सर उसके पास आये और सिर पर हाथ फेरते हुये बोले-’कोई बात नहीं बेटा। हम तुम्हारे घर फोन कर देते हैं। घर वापस चले जाओ।’’ रिंकू कुछ कहना चाहता था पर गला सूखने की वजह से वह कह न सका। कुछ देर बाद टूसीटर लेकर रिंकू के घर से नौकर किसना आ गया था और रिंकू को साथ लेेकर घर लौट आया था।

शाम को उसका बुखार और ज्यादा बढ़ गया था।
पापा और मम्मी घर लौटे तो उनने रिंकू को खूब डांटा कि वह बुखार की हालत में स्कूल क्यों चल गया ? बेकार में प्रंसीपल सर की शिकायत सुनना पड़ी उन्हे। अब जब तक डॉक्टर न कहे वह स्कूल कतई नही जायेगा। रिंकू चुपचाप सुनता रहा। इलाज कराते हुये इसी तरह एक महीना बीत गया, तब जाकर रिंकू ठीक हो पाया।डॉक्टर ने उसे खुशखबरी दी कि वह कल से स्कूल भी जा सकता है।
उस दिन स्कूल में पहला दिन था। लंच की घंटी बजी तो उसने अपना टिफिन खोला। टिफिन में रोज की तरह परांठे और आम का अचार रखा था। वह लम्बी बीमारी से उठा था, और भीतर ही भीतर उसकी सारी भूख मर सी गई थी, तली हुई चीजो के प्रति मन में एक ऊब सी पैदा हो गई थी, इस कारण पराठें की खुशबू से ही उसका मन चिड़चिड़ा गया। एक कौर भी खाने की इच्छा नहीं हुई। आज सुबह उसने मम्मी से कहा था कि टिपिन में खिचडी रख देना, पर मम्मी को शायद खिचडी रखने में बेइज्जती लगी होगी सो किसना से बनवाकर रोज की तरह परांठे ही रखबा दिये।
सब बच्चे खा रहे थे, पर रिंकू चुपचाप बैठा था। उसकी क्लास का एक लड़का बेटू उसके पास में ही बैठा था। रिंकू को लंच न करते देख वह बोला- ’’क्या बात है रिंकू, खाना क्यों नहीं खा रहे ?’’ रिंकू ने कुछ न कहा बस मुस्करा दिया। उसे याद आया कि मम्मी मना करती है कि छोटे लोगों से दूर रहना चाहिये। बेटू के पिता उसी दफ्तर में बाबूगिरी करते हैं जिसमें रिंकू के पापा ऑफीसर हैं। इसीलिये बेटू और उसके
पिता को रिंकू के मम्मी पापा छोटे लोग कहते हैं। इसलिये रिंकू हमेशा बेटू से दूर रहता है। रिंकू की क्लास के कई लड़के बड़े ऑफीसरों के लड़के हैं ऐसे लड़कों से ही दोस्ती रखने की हिदायत उसके मम्मी पापा ने दी है। रिंकू ने देखा कि बगल में बैठे अक्षत, गौरव और प्रभात गपागप खा रहे है, पर रिंकू की तरफ किसी का ध्यान नहीं है।

एकाएक उसे लगा कि ये तीनों उसके झूठे दोस्त हैं, सच में झूठे, मक्कार और स्वार्थी दोस्त हैं तीनों के तीनों। आज जब रिंकू ने होमवर्क की कॉपी मांगी तो तीनों बोल रहे थे कि उनकी मम्मी पापा नाराज होंगे, इस वजह से कॉपी नहीं दे सकेंगे उसे। अब एक महीना स्कूल से गायब रहा है तो अपनी गलती का नतीजा भी खुद ही भुगते। इन तीनों पर गुस्सा आते ही उसे अपनी मम्मी पर भी गुस्सा आया। मम्मी की एक भी सहेली ऐसी नहीं जो मन से भी अच्छी हों। पीठ पीछे वे सब की सब मम्मी की बुराई करती हैं।

रिंकू ने पिछली बार अपना चौदहवां जन्म दिन मनाया था। इस समय दिसम्बर चल रहा है। एक महीने बाद उसका पन्द्रहवां जन्म दिन आयेगा। पन्द्रह साल की उम्र में रिंकू इतना समझने लगा है कि कौन सच्चा है कौन झूठा। पर मम्मी की वजह से वह सदा ही झूठे और मक्कार बच्चों के साथ रहता आया है। वह अब तक मम्मी का कहना ही मानता रहा है और छोटे लोगों से दूर रहा है। इसकी वजह से वह अक्षत गौरव और प्रभात जैसों से खुद चिपकता रहता है। एकाएक उसे गुस्सा आया। वह अब अपनी मर्जी से दोस्त बनायेगा। क्लास में कौन कैसा है, इसकी जानकारी मम्मी को नहीं रिंकू को ज्यादा अच्छी तरह से हो गई है।
फिर वह बेटू की तरफ देखकर एक बार और मुस्कराया और बोला-’’एक महीने तक मैं बीमार रहा न, इस वजह से मैं पराठे नहीं खा पा रहा हूँ।’’ तो मेरे साथ रोटी खा लो। मैं रोज रोटी लाता हूँ।’’ बेटू ने अपना टिफिन उसकी तरफ बढ़ाया। रिंकू ने बेटू के टिफिन में से ही खाना खाया। उसने जब अपना टिफिन बेटू का दिया तो बेटू ने मना कर दिया।
उस दिन से उन दोनों की दोस्ती रोज-रोज बढ़ने लगी। बेटू ने बिना मांगे ही अपनी सारी कॉपियां देकर रिंकू का होमवर्क कराया। एक दिन अपने घर भी वह रिंकू को ले गया।

रिंकू ने देखा कि बेटू की मम्मी उसे खूब प्यार करती है। स्कूल से लौटते ही लपक के उसका बस्ता ले लेती है, बेटू के सिर पर हाथ फेरती है, उसे अपने हाथ से खाना खिलाती हैं। यह देखकर रिंकू रो पड़ा। उसकी मां ने कभी ऐसा न किया था। फिर तो रिंकू प्राय‘ बेटू के घर जाने लगा। बेटू की मां उसे भी खूब प्यार करने लगी।

एक जनवरी का दिन आया। सुबह रिंकू जल्दी उठ गया, क्योंकि आज उसका जन्म दिन था। वह सोच रहा था कि शायद मम्मी जल्दी जागेगी और जन्म दिन की बधाई देगी। पर मम्मी पापा तो कल रात न्यू ईयर की पार्टी में गये थे न सो वे देर तक सोयेंगे। रिंकू चुपचाप घर से निकला और बेटू के घर जा पहुंचा। बेटू की मम्मी ने पूजा की थाली से उसके माथे पर टीका लगाया और आरती उतारी। फिर उसकी पसन्द का खाना बनाया। खाना खाकर वह बेटू के साथ लेट रहा था कि एकाएक उसे अपने पापा की आवाज सुनाई दी।

वह चौंक कर बाहर आया। सचमुच मम्मी और पापा परेशान से होकर बाहर खड़े थे। उसे देखकर मम्मी रो उठीं। पापा ने आगे बढ़कर उसे गले से लगा लिया। रिंकू ने बताया कि बेटू की मम्मी ने उसका जन्म दिन अलग ही तरीके से मनाया है। तो मम्मी पापा ने बेटू की मम्मी को खूब धन्यवाद दिया और उसे अपने घर ले आये। रास्ते में पता लगा कि बिना सूचना दिये रिंकू के सुबह सुबह गायब हो जाने के कारण मम्मी पापा बड़े दुःखी हो गये थे और यहाँ वहाँ ढूढंते फिर रहे थे। रास्ते में ही मम्मी पापा ने उससे अपनी गलती मानी, कि वे रिंकू को ज्यादा समय नहीं दे पाते। अब आयंदा वे रिंकू का पूरा ध्यान रखेगें। रिंकू ने पापा को इस बात का अनुरोध किया कि वे किसी भी आदमी को छोटी बड़ी नौकरी के कारण अच्छा बुरा नहीं मानेगें।
पापा ने इस पर भी सहमति दे दी तो रिंकू उनकी गोद में सिमट गया। मम्मी की आंखे भींगी थी और वे रिंकू का सिर सहला रही थीं।

परिचय :- राजनारायण बोहरे
निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश
जन्म : २० सितम्बर १९५९ को मध्यप्रदेश के अशोकनगर में हुआ।
शिक्षा : लॉ तथा पत्रकरिता में स्नातक और हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर डिग्री।
पुस्तक : चार कथा सँग्रह इज्जत आबरू, गोस्टा तथा अन्य कहानियां हादसा, मेरी प्रियब कथाएँ।
उपन्यास : मुखबिर
अन्य : कुल ३ बाल उपन्यास एवं शताधिक समीक्षा लेख महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशित
पुरस्कार : म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन का वागीश्वरी पुरस्कार साहित्य अकादेमी मप्र का सुभद्रा कुमारी चौहान पुरस्कार एवं कहानी भय पर प्रधानमंत्री महोदय द्वारा १९९७ में पुरस्कृत।
सम्प्रति : जीएसटी में राज्य कर सहायक आयुक्त
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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