जितेन्द्र रावत
मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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वो मासूम सा, खुद पर रोता रहा।
भूखे पेट ही खुद से लड़ता रहा।
जो उमीदें थी उसकी खत्म हो गयी।
चाहत उसकी ही,अब जख़्म हो गयी
बेबस भूखे पेट रोज सोता रहा।
वो मासूम सा, खुद पर रोता रहा।
भूखे पेट ही खुद से लड़ता रहा।
ख़ुदा कैसे लिखा मेरी किस्मत को।
अब कुछ ना रहा,तेरी ख़िदमत को।
परिवार की ख़ातिर खुद को बोता रहा।
वो मासूम सा, खुद पर रोता रहा।
भूखे पेट ही खुद से लड़ता रहा।
धूप कड़ी थी मेहनत करता गया।
भूखे बच्चें ना सोये पाई जोड़ता गया।
दो जून की रोटी को तरसता रहा।
वो मासूम सा, खुद पर रोता रहा।
भूखे पेट ही खुद से लड़ता रहा
कैसे गुजरते है ये दिन ना पूछो खुदा।
लाचारी से अच्छा दुनिया से कर दे जुदा।
राह दिखा दे मुझे विनती करता रहा।
वो मासूम सा, खुद पर रोता रहा।
भूखे पेट ही खुद से लड़ता रहा।
साहित्यिक नाम – हमदर्द
पिता – राधेलाल रावत
निवासी – ग्राम कसमण्डी कला, मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा – बी.ए (बी.टी.सी)
राष्ट्रीयता – भारतीय
भाषा – हिन्दी
जाति – हिन्दू
साहित्य में उपलब्धियां – अनेकों समाचार में प्रकाशित रचना एवं साहित्यिक मंच से सम्मानित।
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