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सीधे से जीवन में उलझा इंसान

राहुल शर्मा
जयपुर, (राजस्थान)

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ईश्वर की है देन सीधा, सरल, सौम्य, मधुर जीवन।
यूं ही ऐसा ही सोच अपने मन में रच दिया ये भुवन।।

प्रकृति से अनजान मानुष आकर इस नरवेश में ।
धुंधली-सी नजर हकलाती सी आवाज इस परिवेश में।।

देख मोहक रचना इस मनुष्य वासी ग्रह की।
धीरे-धीरे बुनने लगा है इक कथा अपने मन ।।

ये आकाश, पृथ्वी, अग्नि, हवा, जल पंचतत्व।
मानव ने सुर्लभ प्रयोग यूं नाम दिये मनगढ़ंत।।

प्यास व भूख मिटाने को, तन को रंगों से ढकने को।
पांव की दूरियां मिटाने को, नभघर को छूने को।।

इन सब को पूरा करने के लिए किये कई सृजन ।
प्रगति की अभिलाषा में दूर होते जा रहे सारे जन।।

मनमोहक-सी धरा के सुंदर नजारे देख प्रेम-विश्वास में।
दया, हित, करुणा भावों को रचा इन शब्दों में।।

चलता रहा वह प्रकृति के रंगों को बदरंग करते।
रंग बदला तो बदला मानव कुछ ये गहरा धरते।।

धर लिए औजार नफरत, ईर्ष्या, घृणा-घमंड के।
जहां करना था सिर्फ अपना काज नया बुनने सर्जन के।।

ये मानव भ्रमित है अभी भी क्या करूं क्या ना करूं।
इच्छा है अभी गगन छूने की, सपनों को तो खूब पाला हूं।।

अब ये स्वप्न सिर्फ शब्दों के आकाश में तैर रहे हैं।
यह धोखा, फरेब, लालच अब खुद के घर समाए हैं।।

प्रकृति में विद्यमान हर बनावट सब अपने में लीन है।
आंख बंद करके मेरे जन्म को देखता हूं तो लगता है।
मैं एक मानव रूपी जीवन सीधे से जीवन में उलझा हूँ।

 

परिचय :- राहुल शर्मा (राष्ट्रीय प्रेरक-वक्ता)
निवासी : जयपुर, राजस्थान


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