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इंसान

नीलेश व्यास
इन्दौर (मध्य प्रदेश)

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”यहाँ कोई इंसान नही है ? …..यहाँ कोई मेरा अपना नही है ?” यह दारुण शब्द उन माताजी के थे, जो कोरोना का ईलाज सफलता पुर्वक होने पर आज ही जब अपने घर पहुँची थी, तब एक ओर उनके तीन पुत्रों मेे से बड़े दो की पत्नियों ओर बच्चों के द्वारा माताजी को अपने साथ रखना तो दूर, उनके पास जाने तक के लिये स्पष्ट रुप से इंकार कर दिये जाने के आदेश के कारण दोनो पुत्र गरदन झुकाये खड़े थे, वहीं दूसरी ओर माताजी की ममता ओर क्रोध दोनों बरस रहे थे किन्तु बेबस माताजी अब कर भी क्या सकती थी, उसी समय माताजी के सबसे छोटे ओर उस ”नालायक” पुत्र का, जिसने अन्य जाति की लड़की से प्रेम-विवाह किया था ओर इस विवाह के कारण माताजी एवं उनके दोनो बड़े पुत्रों ने उसे घर से बाहर कर दिया था, का अपनी पत्नी के साथ माताजी को देखने के लिये आगमन हुआ ओर उन दोनों के कानों में भी माताजी के उक्त शब्द सुनाई दिये थे माता की करुण वाणी को सुनकरआते ही बहु ने माताजी के पैर पकड़ कर कहा ”माँ… क्या अबआप मेरे साथ रहकर मुझे सेवा का अवसर प्रदान करोगी……? यह सुनकर माताजी हतप्रभ रह गयी और उन्हें वह दिन याद आ गया जब उन्होंने अपने पुत्र ओर इस बहू को काफी भला-बूरा कह कर घर से निकल जाने का आदेश दिया था, तब इसी बहू के मुँह से निकले वह शब्द भी माताजी को याद आ गये जो जाते समय बहू ने कहे थे कि ”……माँ अन्य जाति की होने से क्या मै इंसान नही हूँ ……?

परिचय :-  नीलेश दीनदयाल व्यास
निवासी : इन्दौर मध्य प्रदेश
सम्प्रति : अभिभाषक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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