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बीत गये कितने दिन

डॉ. कामता नाथ सिंह
बेवल, रायबरेली

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बीत गये
जाने कितने दिन,
बिन खुद से
बतियाये बोले।।

मन में कुछ आना,
कुछ कहना,
फिर अपने में
दहते रहना,

वृश्चिक-दंश
कभी अपनों,
अपने जैसों का
सहते रहना,

रोम-रोम
रिस-रिसकर
सबके जीवन में
अमृतरस घोले।।

बीत गये
जाने कितने दिन,
बिन खुद से
बतियाये, बोले ।।

एक पांखुरी
खिलने से
झरने तक
कितनों को क्या देती,

कितने पुण्य
बांटती फिरती है
संगम की पावन रेती,

गुणा गणित
या जोड़ घटाना
फ़ुरसत कहां
कि नापे तोले।।

बीत गये
जाने कितने दिन,
बिन खुद से
बतियाये, बोले।।

जब-तब
नेह भरी आंखों से,
कितने सपने
झर जाते हैं,
जिम्मेदारी की
लू से
अंखुवाये सपने
मर जाते हैं,

बिना समय की मर्जी
कब
अपनी मर्जी से
हीले डोले।।

बीत गये
जाने कितने दिन,
बिन खुद से
बतियाये, बोले।।

परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह
पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह
निवासी : बेवल, रायबरेली
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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