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जाने है ये सफ़र कैसा

विवेक रंजन ‘विवेक’
रीवा (म.प्र.)

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सूनी माँग सी राहों जैसा
जाने है ये सफ़र कैसा,
हर बस्ती वीरान मिली,
नहीं खुशी का शहर देखा।

नींद कुचलकर सुबह हुई
और शाम ने भी पहलू बदले,
कितनों की ही मौत हुई
शमशान मगर बेखबर देखा।

जहाँ पर खींचते हैं लोग
जब तब लक्ष्मण रेखा,
उसी दुनिया में हमने
ज़िन्दगी को दर बदर देखा।

रहते थे जो शीशमहल में
घर उन्होंने बदल लिया,
जब जब झाँका सीने में
वहाँ फ़क़त पत्थर देखा।

‘विवेक’ झील के दरपन में
लिखी प्रेम की इबारतें,
मन कस्तूरी महक उठा
जब उनको भर नज़र देखा।

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परिचय : विवेक रंजन “विवेक”
जन्म –१६ मई १९६३ जबलपुर
शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र
लेखन – १९७९ से अनवरत…. दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास “गुलमोहर की छाँव” प्रकाशित हुआ है।
सम्प्रति – सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं।


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