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कैसी ये होली

चेतना ठाकुर
चंपारण (बिहार)

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अब कहां मिलते कोकिल स्वर है।
कौओ की हमजोली
अब कहां राग कहा फाग
कैसी ये होली
ऐसा लगा जैसे आसमान से
प्रीत की बूंद-बूंद बरसी हो तेरे छूने के संग।
और मैं भीगी की धरती सी रंग गई तेरे रंग।
जहां-जहां तू छुए ना जाए तेरा रंग ना सुगंध।
आज मैंने भी भांग पी रखी है
तेरे दो नैनो के प्यालो से।
आज तेरा नशा सर चढ बोल रहा है।
आज सारी दुनिया डोल रहा है।
अपने जी का पोल खोल रहा है
आज मैं झगड़ना चाहूं जी खोल के
तुमसे भी बुलवाना चाहू तुम्हारे एहसास
अपना बोल के
तुम्हारे नजरों के नटखट से आजाद होने आई हूं।
तुम्हें छूने की इजाजत आज मैं घर से लेकर आई हूं
कहीं हो ना जाऊ बदनाम भी फिकराना छोड़ कर आई हूं।
आज तेरे संग मे तेरे रंग में रंगनेआई हूँ ।

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परिचय :-  नाम – चेतना ठाकुर
ग्राम – गंगापीपर
जिला –पूर्वी चंपारण (बिहार)


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