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यह कैसा …… वैशाख

प्रीति शर्मा “असीम”
सोलन हिमाचल प्रदेश
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जिंदगी की बैसाखियों पर,
चलकर …………..यह आज,
कैसा ……….वैशाख आया।

न आज भांगड़े हैं।
न मेले सजे हैं।

फसल कटने -काटने का,
किसे ख्याल आया।।

ज़िंदगी की बैसाखियों पर,
चलकर आज,
कितना मजबूर वैशाख आया।

गेहूँ की फसल का,
घर के,
आंगन में आज न ढेर आया।

कोरोना विस्फोटक हुआ।
मेलों की रौनक का,
न किसी को चाव रहा।
जिंदगी को,
पिछले साल से,
कहीं ज्यादा मजबूर पाया।

दिहाड़ी -दार अपना दर्द,
ढोल की तान पर ना भूल पाया।

जिंदगी की बैसाखियों पर,
चलकर यह कैसा वैशाख आया।

वह हल्की गर्म हवाओं के साथ,
न तेरी धानी चुनर का,
पैगाम आया ।

यह कैसा ……!!!
उदास ………..????
ऊबा हुआ वैशाख आया।

परिचय :- प्रीति शर्मा “असीम”
निवासी – सोलन हिमाचल प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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