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मीडिया कितना कारगर

डॉ. विनोद वर्मा “आज़ाद” 
देपालपुर

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कोलाहल भरे वातावरण में जहां दूरदर्शन और मोबाइल की वजह से परिवार में वार्ता लाप, दादा-दादी के किस्से और कहानियों के साथ अच्छे-बुरे की सीख और समझ से परे आज की नई पीढ़ी होती जा रही है। बच्चों के लिए तो विभिन्न प्रकार के खेल मोबाइल पर चल रहे है उसमे बच्चे रम रहे है। मोबा इल पर जानलेवा खेल खेलकर पूरे विश्व मे कई बच्चे आत्महत्या कर चुके है या अपराध की ओर उन्मुख हो गए।
कई परिवारों की आर्थिक स्थिति ठीक नही होने के बावजूद मोबाइल के लिए लड़के-लड़कियां लालायित रहते है। छोटे से लेकर बड़े बच्चों का मोबाइल आप बन्द नही करवा सकते, मोबाइल की मांग पूरी करना ही पड़ेगी ! आपका मोबाइल बच्चों को देना ही पड़ेगा ! नही तो बच्चे चिढ़-चिढ़े होकर अत्यधिक आक्रोश व्यक्त करने लगते है, खाना नही खाएंगे, आपका कोई काम नही करेंगे, समान उठा-उठाकर फेंकेंगे, यहां तक कि वे गुस्से में भरकर कोई वस्तु उठाकर परिवार के बड़े बच्चों या स्वयम आप पर भी फेंकने में कोई गुरेज नही करेंगे आए दिन समाचार पत्रों में पढ़ने को मिल रहा है। माता-पिता भी बच्चों की जिद या काम के चक्कर मे मोबाइल उनके हाथों में देकर परेशानी से पीछा छुड़ा लेते है। कई बच्चे भोजन नही करते क्योंकि उन्होंने अपना मीनू बना लियाहै हाथ मे मोबाइल दो और अपने हाथों से उनके मुंह मे निवाला देते जाओ, वो मोबाइल पर कार्टून या खेल (गेम्स) में व्यस्त हो जाएंगे। आप आसानी से उन्हें भोजन करवा सकोगे, कई हास्य बातें भी मोबाइल पर देखने को मिलती रही है व्यक्ति मोबाइल पर व्यस्त रहते हुए चलते-चलते किसी खम्भे से टकरा जाता है किसी झील या गड्ढे में गिर जाता है। भोजन करते वक्त मोबाइल पर व्यस्त महिला-पुरुष को यह ध्यान ही नही रहता कि उनकी रोटी का कोल टूटने के बाद शब्जी की बजाय जमीन पर लगकर मुंह मे चला गया है, क्योंकि पास में बैठे भोजन करने वाले ने कोल तोड़ने के बाद धीमे से थाली हटा ली। ऐसे कई हास्य वाकये हो रहे है। मोबाइल देखते-देखते कुर्सी देखकर जैसे ही बैठने लगता है, कोई बन्दा कुर्सी धीमे से हटा लेता है और मोबाइल पर व्यस्त मूरखानन्द धराशायी हो जाता है।
ऐसी कई घटनाएं वास्तविक और हास्य होती रही है। मोबाइल पर विभिन्न चेनल भी अपना अधिकार स्थापित कर चुके है, फोटो ग्राफी, वीडियो ग्राफी के साथ कई फीचर इसमे दिए गए है कि अच्छे भले इंसान का चेहरा हटा कर किसी अन्य शरीर पर स्थापित किया जाने लगा है, कई प्रकार की काट-छांट करके अर्थ को अनर्थ में बदल दिया जाता है, जिसका गलत परिणाम सामने आता है। ऐसे अनेकों वीडियो बनकर ब्लैक मेलिंग का ट्रेड बन गए है। मोबाइल से केवल पेट नही भरा जा सकता यथार्थ में कोई शारीरिक पूर्ति नही की जा सकती लेकिन काल्पनिकता सीखी जा सकती है। अमौलिकता को अपनाया जा सकता है और यही वजह है कि आजकल कल्पनाशीलता पर आधारित सीरियल लड़के-लड़कियां देखकर वैसा होता है, ऐसा होता होगा ?
फितरत, छल-कपट, वैमनस्य पैदा करना, सम्बन्धों में दरार डालना, किसी की न सुनना, रूढ़ियों, परम्पराओं में उलझना आदि सैकड़ों प्रकार की नीतियां बड़े शान से अपनाई जा रही है। एक बड़े तबके में यह सब चल रहा है, कोई समझाइश देने वाला नही, आजकल “सबका मालिक एक” केवल गूगल हो गया है जो सर्च करने पर मार्गदर्शन दे देता है माँ-बाप,दादा-दादी सब गूगल बन गया है।वर्षों पहले ‘एकता कपूर’ के सीरियल में भूमि,मंथन जैसे किरदार निभाने वाले सीरियलों को मैने देखा है,फिर स्वयम देखना बन्द कर घर पर सबको समझाइश दी की यह सब कल्पनिकता पर आधारित होकर वास्तविकता से कोसो दूर है ,ऐसे सीरियल हमारी संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट कर देंगे। रोज-रोज के रोचक अंत और फिर उस सीरियल के आने का इंतज़ार करना सारे काम-काज छोड़कर देखने बैठ जाना,घर-परिवार,समाज के लिए ठीक नही है। दो-दो समय पर आने वाले सीरियल को एक समय पर नही देख पाए तो जैसे-तलप लगने लगती है कि क्या हुआ होगा आज ! अभी नही तो रात में तो देखना ही है,या किसी से आगे की कहानी पूछेंगे,जानकारी नही मिलने पर पछतावा भी करेंगे,फिर इंतजार करेंगे सीरियल के समय का। फिर चाहे कुछ भी हो जाये, सीरियल देखेंगे फिर ही कुछ करेंगे यहां तक कि महिलाएं ऐसे समय मे बर्तन मांजना भी छोड़ देती है,की देर से…..
कुल मिलाकर भारतीयों में एक बड़े तबके पर यह पूर्ण रूप से हावी हो गया है। जो भविष्य में हमारी नस्लों को पंगु बनाने में काफी घातक होगा,हमारी पीढ़ी बर्बाद हो जाएगी,मोबाइल वीर तो बनजाएगी,तकनीक में तो पूरे विश्व को पीछे छोड़ देंगी लेकिन काफी कमजोर ढांचा रह जायेगा शरीर का।
घर से बस द्वारा स्कूल,स्कूल में सिर्फ पढ़ाई,लंच में मोबाइल अधिकांश युवा वर्ग ? अब तो किशोरावस्था आने के पूर्व वाले बच्चे भी इस बीमारी से घिरते जा रहे है, वापसी घर बस से ही होती है।
आते ही कुछ खाना यथा-फ़ास्ट या जंक फूड,मैगी,नूडल्स,टोस्ट, ब्रेड,कुरकुरे,कटोरी-चटोरी न जाने क्या-क्या ? इसी दौरान गेम्स.. कौनसे ? घर के अन्दर तो सिर्फ मोबाइल पर ही ! जबकि खेले जाने वाले खेलों में बच्चे कराटे, स्केटिंग,साइकलिंग, क्रिकेट,वॉली बॉल,फुटबॉल,टेबल-टेनिस,शतरंज,कैरम, बास्केटबॉल,सॉफ्टबॉल,आदि खेल खेल सकते है,तैराकी कर सकते है,अखाड़े जाकर जोर आजमाइश कर सकते है। दंड-बैठक लगा सकते है,योग,ध्यान, मौन भी शरीर को साधने का मुख्य साधन है।पहले तो बच्चे हमेशा अंटी, लँगड़ी,घोड़ी बनना,नक्का-मुठ, अंग-बंग-चोक-चंग,सोलह सार,एक्सप्रेस (छुपाछई),साइकल चलाना,दौड़,ऊंची-कूद, लम्बी-कूद,भाला फैंक, गोला-चक्का फैंक, कबड्डी,खो-खो,ची घोड़ी,घोड़ी के आकार में खड़े होकर पीठ पर हाथ रखकर कूदना, ठीकरी जमाना,कोकोनट, घोड़ा बदाम छय-पीछे देखे मार खय,दड़ीमार,गुलाम डाला, पेड़ो पर चढ़ना-उतारना,आम के तने की खोह में से मिट्ठू(तोते)के बच्चे कोनिकालकर घर लाना पिंजरा सजाना आदि अनेकों खेल खेलकर हष्ट-पुष्ट भी रहा करते थे।
मोबाइल के खेल इस बात की कोई ग्यारंटी नही देते की शरीर मजबूत रहेगा! पर हां,इस बात की गारंटी हो सकती हैकि आपका सिर दर्द होगा,नज़र टेडी होजाएगी (ढेरापन), चश्मा जल्दी लग जायेगा। थुल-थुलापन, मोटापा,कमजोरी भी पुरस्कार में मिल जायेंगी। पर हां ! घर मे ही मोबाइल पर लगे रहने से रंग साफ यानि गोरापन आ जायेगा जो सीरियल देख रहे है उससे यह सब सीख जाएंगे कि छल-कपट, कब राग-द्वेष हो,जो हम देख रहे है वैसा ही जीवन मे करना है या होता है ! लड़कियां या लड़के ससुराल जाएं तो कैसा बर्ताव या व्यवहार करना यह सब सीरियल से सीखने को मिलेगा,घर परिवार में तोड़-फोड़ करना। पहले सास-ससुर की चला करती थी,लेकिन अब बहुओं की चलती है इसीलिए तो वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ती जा रही है।तलाक के केस बढ़ रहे है,मोटी रकम भी ली-दी जा रही है।फैशन बनता जा रहा है तलाक, धन भी खूब मिल जाता है,धन के आगे संस्कारों की कीमत भी गौण होती जा रही है,शादी होने के कुछ दिनों के बाद ही खटर-पटर शुरू,रूठना-मनाना प्रारम्भ,माता-पिता से अलग रहेंगे, कोई मना करें तो सीधे मायका,सम्बन्ध करने-कराने वाले दुश्मन,जिंदगी खराब करवा दी,लड़के की या लड़की की आदि बातें भी शुरू हो जाती है।शादी के पहले “मीठा-मीठा गप-गप,बाद में कुछ हो जाये तो “कड़वा-कड़वा थू-थू”ये सब होने लगता है।
हम केवल और केवल वर्तमान में जी रहे है,भूत और भविष्य के बारे में सोच ही नही रहे है,वह तो गूगल दादा के ऊपर छोड़ दिया है।
हम घर के बड़े बुजुर्ग इन बुराइयों के बारे में बच्चों से बातें करें,इसकी अच्छाइयों को आत्मसात करने हेतु प्रेरित करें। सीरियल की बजाय रोज-रोज की झंझट भी दूर फ़िल्म ही देख ली जाय यह अच्छा है। मन को भी सुकून। मोबाइल और दूरदर्शन में सब कुछ गलत नही होता,बहुत सी अच्छाइयांभी है,बस ! हमारा नज़रिया हमे बदलना पड़ेगा अच्छी सोच के साथ कि-
“नज़र बदलो तो नज़ारे बदल जाते है,
सोच बादलो तो सितारे बदल जाते है,
कश्ती बदलने की ज़रूरत नही,
दिशाएं बादलों तो किनारे बदल जाते है।”
मालवी बोली में कहावत है कि “डाली अभी नरम है,जैसी घुमवगा वसी घूमी जायगा”,ने नी तो बाद में “पाक्या घड़ा पे ग़ार भी नी चढ़ेगा।”
हमें पुनः दादा-दादी नाना-नानी की कहानी, दादा-पोता संवाद,दादी-पोती की मिठास,पिता का बेटी के प्रति झुकाव व मां का बेटे के प्रति लगाव इन सब को जागृत करना होगा। पुरातन पद्धति की ओर लौटना होगा!इन सभी को पुनः चलन में लाना होगा नही तो पंगु समाज की स्थापना में हमारे बच्चे भी योगदान करते दिखेंगे। बाद में रोने का अवसर भी नही मिलेगा।

(नोट:-कुछ बातें अपवाद हो सकती है – सीरियलों में आजकल जो परोसा जा रहा है वह कल्पना पर आधारित है , वास्तविक जीवन मे घर-परिवार रिश्ते सामाजिक ताने-बाने से चलते है। अपने बच्चों को समाज के प्रत्येक कार्यक्रम में साथ ले जावें ताकि वे सीरियल और वास्तविक जीवन मे अंतर समझ सके।)

 

परिचय :-  डॉ. विनोद वर्मा “आज़ाद” सहायक शिक्षक (शासकीय)
शिक्षा – एम.फिल.,एम.ए. (हिंदी साहित्य), एल.एल.बी., बी.टी., वैद्य विशारद पीएचडी. 
निवास – इंदौर जिला मध्यप्रदेश
स्काउट – जिला स्काउटर प्रतिनिधि, ब्लॉक सचिव व नोडल अधिकारी
अध्यक्ष – शिक्षक परिवार, मालव लोकसाहित्य सांस्कृतिक मंच म.प्र.
अन्य व्यवसाय – फोटो & वीडियोग्राफी
गतिविधियां – साहित्य, सांस्कृतिक, सामाजिक क्रीड़ा, धार्मिक एवम समस्त गतिविधियों के साथ लेखन-कहानी, फ़िल्म समीक्षा, कार्यक्रम आयोजन पर सारगर्भित लेखन, मालवी बोली पर लेखन गीत, कविता मुक्तक आदि।
अवार्ड – CCRT प्रशिक्षित, हैदराबाद (आ.प्र.)
१ – आदर्श संस्कार शाला मथुरा(उ.प्र.)द्वारा “शिक्षा रत्न अवार्ड”
२ – स्वर्ण भारत परिवार नई दिल्ली-शिक्षा मार्तंड सम्मान
३ – विद्या लक्ष्य फाउंडेशन धनौरा(सिवनी)म.प्र. से राष्ट्रीय शिक्षक संगोष्ठी के तहत(शिक्षक सम्मान)
४ – मंथन एक नूतन प्रयास राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान-शुक्रताल,मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)
५ – राज्य शिक्षा केन्द्र के अंतर्गत श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान,पीटीएस.इंदौर
६ – भाषा गौरव सम्मान-राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना म.प्र. इकाई।
७ – विश्व शिक्षक दिवस पर सम्मान-शिक्षक सन्दर्भ समूह-नेमावर म.प्र.
८ – टीचर्स इनोवेटिव अवार्ड (राष्ट्रीय अवार्ड)ZIIEI
९ – नेशनल बिल्डर अवार्ड (हरियाणा)
१० – हिंदी साहित्य लेखन पर अम्बेडकर फेलोशिप (सम्मान)नई दिल्ली
११ – हिंदी रक्षक सम्मान (राष्ट्रीय सम्मान),इंदौर
१२ – जिला कलेक्टर इंदौर द्वारा सम्मान।
१३ – पत्रिका-समाचार पत्र टीचर्स एक्सीलेंस अवार्ड
१४ – जिला पंचायत इंदौर द्वारा सम्मान।
१५ – जिला शिक्षण एवम प्रशिक्षण संस्थान इंदौर द्वारा सम्मान।
१६ – भारत स्काउट गाइड जिला संघ द्वारा सम्मान
१७ – लॉयन्स क्लब द्वारा सम्मान
१८ – दैनिक विनय उजाला समाचार पत्र का राज्य स्तरीय सम्मान
१९ – राज्य कर्मचारी संघ, म.प्र.द्वारा सम्मानित
२० – शासकीय अधिकारी, कर्मचारी संघ द्वारा सम्मान।
२१ – रजक मशाल पत्रिका परिषद द्वारा राज्य स्तरीय सम्मान
२२ – देपालपुर प्रशासन, एसडीएम.द्वारा 15 अगस्त 2018 को सम्मान।
२३ – मालव रत्न अवार्ड,इंदौर
२४ – दृष्टिबाधित शासकीय शिक्षक संघ द्वारा सम्मान।
२५ – श्री गौरीशंकर रामायण मंडल द्वारा सम्मान।
२६ – नगरपरिषद द्वारा सम्मान्
२७ – विवेक विद्यापीठ द्वारा सम्मान
२८ – जनपद शिक्षा केन्द्र द्वारा सम्मान।
२९ – युवा जनजागृति मंच सम्मान।


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