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कैसे छूएं हम गगन को

अन्नू अस्थाना
भोपाल (मध्य प्रदेश)

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कैसे छूएं हम गगन को,

रौंद तो दिये जाते है।

कैसे उड़े गगन में,

पंख तोड़ मरोड़ दिये जाते हैं।

कहा था हमसे कभी किसी ने,

तुम गुल हो चमन के,

तुम शान हो वतन के,

नेता तुम्ही हो कल के।

पूछा था कभी हम से किसी ने,

नन्हे-मन्हे तेरी मुट्ठी में क्या है,

मुट्ठी में तकदीर है हमारी,

यह कहा था हमने।

कैसे छूएं हम गगन को,

रौंद तो दिये जाते है।

कैसे उड़े गगन में,

पंख तोड़ मरोड़ दिये जाते हैं।

बेखौफ हमें दबोच लिया जाता,

कैसे बनेगे हम राष्ट्र निर्माता।

घर आंगन मे ही लगता है डर,

बाहर निकलना है दुभर।

भैया, काका, और चाचा

इन्हीं से डर अब ज्यादा सताता।

कैसे छूएं हम गगन को ………

सोच रहे थे हम सब नन्हें साथी पल-पल,

इंसाफ कि डगर पर कैसे चले हर-पल।

खेलने में, कुदने में, झुमने में और नाचने में,

हमे मजा बहुत आता।

पर ना जाने वैहषी कब झपट मार जाता,

कोई समझ नहीं माता – कोई समझ नहीं माता ……

कैसे छूएं हम गगन को,

रौंद तो दिये जाते है।

कैसे उड़े गगन में,

पंख तोड़ मरोड़ दिये जाते हैं।

 

परिचय :-  अन्नू अस्थाना
निवासी :- भोपाल, मध्य प्रदेश
कविता लिखने कि प्रेरणा :- कवि संगोष्ठीयों में भाग लेते थे एवं कवियों से प्रेरणा स्वरूप हिन्दी भाषा से स्नेह होता चला गया तथा हिन्दी में कविता लिखने का ज्ञान होता चला गया।
वर्तमान कार्य:- हिन्दी टाइपिंग कार्य एवं छायप्रति (फोटो काॅपी) कार्य
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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