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हम अपने कर्तव्य के प्रति कितने प्रतिबद्ध है, या केवल औपचारिकता पूरी करते हैं?

कुमार जितेन्द्र
बाड़मेर (राजस्थान)

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कर्तव्य अर्थ :- किसी भी कार्य को पूर्ण रूप देने के लिए सजीव व निर्जीव दोनों नैतिक रूप से प्रतिबद्ध हैं। तथा दोनों कर्तव्य के साथ अपनी भागीदारी का पालन करते हैं। हम जानते हैं कि कर्तव्य से किया गया कार्य हमे एक विशेष परिणाम उपलब्‍ध करवाता है। जो वर्तमान एवं भविष्य के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इंसान को कर्तव्य का प्रभाव केवल इंसानों में ही नजर आता है। परन्तु इस धरा पर इंसान के अलावा पशु – पक्षी और निर्जीव वस्तुएँ भी अपना महत्वपूर्ण कर्तव्य अदा कर रहे हैं l यह किसी को नजर नहीं आता है l क्योकि वर्तमान में इंसान अपने स्वार्थ को पूरा करने में दिन – रात दौड़ भाग कर रहा है। उसके लिए एक पल भी किसी को समझने का नहीं है l आईए कर्तव्य को विभिन्न विश्लेषण के साथ समझने का प्रयास करते हैं।
मनुष्य अपने कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध :- मनुष्य अपने कर्तव्य के प्रति कितना प्रतिबद्ध है और कितना नहीं यह हम सब जानते हैं। सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य “माँ” के रूप में निभाया जाता है। माँ अपने बच्चे को गर्भ से लेकर बड़े होने तक सभी भूमिकाओं को अपना कर पूरा करती है। क्योकि माँ के दिये गये संस्कार से बच्चा अपना भविष्य तय करता है। बच्चा अपना सबसे ज्यादा वक्त माँ के पास गुजारता है। तथा दूसरे नंबर पर देखा जाए तो पिता भी बच्चे के जीवन को दिशा देने के लिए अपने कर्तव्य का पूर्ण निर्वाह करता है। तीसरे स्थान पर नजर डाली जाए तो शिक्षक भी अपना महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाता है। वह बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर भविष्य के लिए तैयार करता है। मनुष्य के रूप में कर्तव्य का पालन परिवार, समाज और संस्कृति सब समय – समय भूमिका अदा करते हैं। परन्तु वर्तमान में एक नजर डाली जाए तो मनुष्य ने कर्तव्य की परिभाषा बदल दी है। सब अपने अपने कर्तव्य से पीछे हट रहे हैं। केवल औपचारिक रूप कर्तव्य को अपने का कार्य कर रहे हैं। वर्तमान में मनुष्य के अंदर एक भयंकर बीमारी स्वार्थ, ईर्ष्या, द्वेष ने कर्तव्य को बहुत पीछे तक धकेल दिया है। हर कोई अपने कर्तव्य से पीछे भाग रहा है। समय रहते इंसान को अपने जीवन के महत्‍वपूर्ण भाग कर्तव्य को समझना होगा।

पशु-पक्षी अपने कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध :- क्या यह सही है कि पशु पक्षी भी अपने कर्तव्य का पालन करते हैं। जिस हाँ हम सही पढ़ रहे हैं। इस धरा पर केवल मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी समय समय अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं। जैसे सुप्रभात वेला में मुर्गा, गाय और सभी पक्षी अपनी मीठी मीठी वाणी से इंसान को जगाने का कार्य करते हैं। प्रभात वेला में मानो ऎसा लग रहा होता है जैसे कोई प्यारी सी आवाज में संगीत सुना रहा हो। दूसरी ओर देखा जाए तो कुत्ता भी रात के वक्त अपने घर, मोहल्ले में अनजान व्यक्ति के प्रवेश करने या कुछ घटती होने पर हमे सावधान होने के सचेत करता है। यानी पशु पक्षी भी अपने कर्तव्य का पालन सही तरीके से करते हैं। परन्तु वर्तमान में इनमे भी कुछ बदलाव देखने को मिल रहा है। जो चिंतनीय है।
पेड़-पौधे अपने कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध :- इस धरा पर कर्तव्य के प्रति पेड़-पौधे भी प्रतिबद्ध है। जैसे इंसान को जीवन रखने के लिए हर वक्त स्वच्छ प्राण वायु उपलब्ध करवाते हैं। अपने आसपास का वातावरण शुद्ध रखने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इंसान को प्राण वायु के साथ भोजन पकाने के लिए ईधन के रूप लकड़ी, गर्मी के मौसम बैठने के लिए छाया, ठंडी हवा और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए विभिन्न प्रकार के फल और अपने आसपास के वातावरण को खुशबूदार बनाने के लिए फूल हमे प्रदान करते हैं। यानी तक देखा जाए तो इंसान के अंतिम समय में भी पेड़-पौधे लकड़ी के रूप जलकर अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। परन्तु वर्तमान में इंसान ने पेड़-पौधो की ऎसी स्थिति पर लाकर खड़ा कर दिया है। जिसके बारे में निःशब्द हूँ। यानी पेड़-पौधों का अस्तित्व धीरे धीरे खत्म हो रहा है। जिस पर इंसान को चिंतन मनन करने की जरूरत है।
निर्जीव वस्तुएँ भी अपने कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध :- जी हां हम यह भी सही पढ़ रहे हैं। निर्जीव वस्तुएँ भी अपना कर्तव्य निभाने में कोई कमी नहीं रखते हैं। जैसे पहाड़ जो इस धरा पर सदियों से अपने कर्तव्यों का पालन कर रहा है। इंसान के जीवन में हर पल सहयोग करता आ रहा है। जैसे तेज तूफान को अपनी ओट में रोक कर इंसान को नुकसान होने से बचाता है। बारिश के मौसम में पानी को नाले के रूप एकत्रित कर पीने योग्य बनाता है। तथा रहने के लिए अपने को टुकड़े टुकड़े में बांट कर मकान के रूप में खड़ा कर देता है। दूसरे रूप में निर्जीव इस धरा पर विभिन्न प्रकार के पदार्थों के रूप में समय-समय इंसान के जीवन में उपयोगी बन कर अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। यानी निर्जीव भी अपने कर्तव्यों को सही तरीके से से निभाते हैं। परन्तु वर्तमान में इंसान ने इनको भी अपने कर्तव्यों से भटका दिया है। यह भी चिंतनीय विषय है।
प्राकृतिक परिवर्तन भी अपने कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध :- कर्तव्य को निभाने में प्राकृतिक परिवर्तन भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। जैसे-जैसे समय अपने पथ की ओर चल रहा है वैसे वैसे प्राकृतिक परिवर्तन भी समय-समय पर हो रहे हैं। जैसे बारिश अपने चक्र के अनुसार सही समय पर होती है। इसी प्रकार सर्दी, गर्मी सभी परिवर्तन अपने तय समय और सीमा पर होते हैं। और इंसान को सभी सुविधाओं को उपलब्ध करवाते हैं। परन्तु वर्तमान में इंसान के स्वार्थ के प्रति भावना के कारण इसमें भी बदलाव देखने को मिल रहा है। समय से पहले बारिश, गर्मी और सर्दी का आना और जाना। कभी अत्यधिक बारिश तो कभी सूखा देखने को मिल रहा है। इस पर विचार करने योग्य है। समय रहते इन समस्याओं से समाधान ढूढना होगा। अन्यथा भविष्य के परिणाम कुछ और ही होंगे।
आओ हम सभी मिलकर अपने कर्तव्य के प्रति संकल्प ले :- इस आलेख में हमने सजीव से लेकर निर्जीव तक अपने कर्तव्यों के पालन के बारे में समझने की कोशिश की है। अंत में कहने का तात्पर्य यह है कि जो पहले समय में कर्तव्य देखने को मिलता था अब उसमे बहुत कुछ परिवर्तन आ गया है। यह परिवर्तन इस धरा पर सभी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। अगर समय रहते उचित कदम न उठाए तो। और हम सब अपने स्वार्थ, ईर्ष्या, द्वेष और दूसरो को गिराने की भावना को त्याग कर जीवन को सर्वश्रेष्ठ कैसे बनाए इस पर चिन्तन करे और भविष्य को उज्ज्वल बनाए। यही हमारा इस जीवन का महत्वपूर्ण कर्तव्य है।

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परिचय :- नाम :- कुमार जितेन्द्र (कवि, लेखक, विश्लेषक, वरिष्ठ अध्यापक – गणित)
माता :- पुष्पा देवी
पिता :- माला राम
जन्म दिनांक :- ०५. ०५.१९८९
शिक्षा :-  स्नाकोतर राजनीति विज्ञान, बी. एससी. (गणित) , बी.एड (यूके सिंह देवल मेमोरियल कॉलेज भीनमाल – एम. डी. एस. यू. अजमेर)
निवास :-  सिवाना, जिला – बाड़मेर (राजस्थान)
सम्प्रति :- वरिष्ठ अध्यापक
सम्मान :- विभिन्न संस्थाओ द्वारा काव्य, आलेख लेखन में अब तक ५० सम्मान पत्रशिक्षा में शून्य निवेश से नवाचार करने पर राष्ट्रीय स्तर पर ZIIEI द्वारा “शिक्षक नवाचार राष्ट्रीय पुरस्कार” से सम्मानित
प्रकाशन :- विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं (USA से प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र – हम हिंदुस्तानी व देश, प्रदेश के अन्य समाचार पत्र, दिल्ली से प्रकाशित मासिक पत्रिका “आलोक पर्व” में महत्वपूर्ण आलेख) में संपादकीय पृष्ठ पर विश्लेषण, हिंदी रक्षक मंच इंदौर में कविताएँ प्रकाशित l


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