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काश

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रचयिता : मीनाकुमारी शुक्ला – मीनू “रागिनी”

खुशियाँ सब सूली चढीं खारों सी बनी ये जिंदगानी।
भरा जख्म से दिल मेरा ये कैसी लिखी गयी कहानी।।

प्यासा सावन भीगा काजल दिल हुआ जख्मों से फानी।
सूना आँचल प्यासा दामन सूनी सूनी रही जवानी।।

चाह चाँद की थी रात जालिम जख्मेंजिगर सिलते रहे ।
ख़्वाब सारे परवान चढ़े आग सी जली सेज सुहानी।।

मिले दिलबर प्रीति भरा बस नयन तलब उसे मेरी रहे।
ताउम्र खोजती रही उस प्यार को थी तलाश पुरानी।।

हुई इम्तिहाँ इन्तज़ार की तब मिला मीत बसंत दिल,
पतझड़ बन चुका सूखे रो-रो नयन दरियाओं का पानी।।

काश!! न होती तलाश पूरी, मोत पर खत्म होती सोच।
या होती मुझे इजाज़त!! जी लेती फिर से जिंदगानी।।

लेखक परिचय :-  नाम – मीनाकुमारी शुक्ला
साहित्यिक उपनाम – मीनू “रागिनी “
निवास – राजकोट गुजरात 


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