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मधुमास

शरद सिंह “शरद”
लखनऊ

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गुनगुनाती धूप मुस्कराते पुष्प
यह तेरा साथ, लिये हाथों में हाथ
लो आ पहुंचा मधुमास …..

यह कोकिल उपहास
और भ्रमर उल्लास
लो आ पहुंचा मधुमास …..

यह नदियां की जल धार,
चली करने सागर से प्यार
जल कुक्कुट करें विहार।
यूं रखकर नव नव रूप
लो आ पहुंचा मधुमास …..

चले मन्द मस्त बयार
सुरभित पुष्पों की बहार
उन पर भंवरों की गुंजार
नव किसलय का धर रूप
लो आ पहुंचा मधुमास …..

खेतों में बिछा के पीली सेज,
मानिनी चली सजा निज केश
पा कृष्ण मिलन सन्देश,
आतुर हो आ पहुंचा मधुमास …..

हरित मृदुल मखमली ग्रास
बिछा अबनि में चहुंओर
चुराकर गोरी का मन मोर
लो आ पहुंचा मधुमास …..

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परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने “मेरी स्मृतियां” नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है।


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