मीना सामंत
एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली)
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लॉक डाउन लगने से पहले भारतीय सेना में सेवारत मेरे पति नरेंद्र जी की छुट्टी मंजूर हो गई थी। वो दिल्ली हम सभी के पास आ गए थे। उनकी वापसी की तिथि भी सुनिश्चित हो चुकी थी। उनको २८ जून ड्यूटी पर बॉर्डर जाना था। लेकिन २८ जून से लगभग कुछ हफ्ते पूर्व ही उनकी तबीयत अचानक से बिगड़ गई। उनको तेज बुखार ने अपनी चपेट में ले लिया। छोटी बेटी जान्हवी पापा के सिरहाने बैठे कपड़े को गीले करके पट्टी बनाकर पापा के सिर पर रख रही थी। उधर मुझे अंदर ही अंदर यह चिंता खाए जा रही थी कहीं कोई बड़ी समस्या ना हो इनके स्वास्थ्य के प्रति मेरी चिंता लगातार बढ़ती जा रही थी। हमारी मदद करना हे ईश्वर। मैं परेशान थी हैरान थी। रातों की नींद मेरे आंखों से गायब थी। बुखार इनका लगातार बढ़ता जा रहा था। साथ ही साथ इनका पेट भी खराब हो गया मेरे माथे पर चिंता की लकीरें और तेजी से बढ़ने लगी। मेरी छोटी बेटी जान्हवी लगातार समझा रही थी कि मां चिंता कर के तुम भी बीमार मत पड़ जाना। जो भी होगा देखा जाएगा ।परेशान क्यों होती हो । अगर तुम इस तरह से परेशान होगी तो पापा की भी चिंता बढ़ेगी, और मैं भी बीमार पड़ सकती हूं। तुम भी बीमार पड़ सकती हो। बेटी ने मुझे हौसला देना शुरू किया, और मैंने अंदर ही अंदर भगवान से प्रार्थना करनी शुरू की।
दो-तीन दिन के अंदर ही देखा तो नरेंद्र पर दवाई का बढ़िया असर हो रहा था। वह ठीक हो रहे थे, और पूरी तरह ठीक हो भी चुके थे।
लेकिन यह क्या किचन में काम करते-करते मुझे भारी थकावट का एहसास हुआ। सिर घूमने लगा एवं सिर तेजी से दर्द करने लगा मैं बिस्तर पर जाकर लेट गई। लगभग आधे घंटे के अंदर ही मुझे काफी तेज बुखार ने जकड़ लिया। अब मैं परेशान हो गई नरेंद्र को वापस ड्यूटी पर बॉर्डर जाना है, और मेरी तबीयत इस तरह से है। आखिर वह मुझे छोड़कर बॉर्डर पर चले जाएंगे ड्यूटी पर, तो मेरी देखभाल कौन करेगा? अकेले जान्हवी बेटी भी परेशान हो जाएगी..! बड़ा बेटा देवेन्द्र जिसे मैं बब्बू कहती हूं वह पहले से ही लॉकडाउन के चक्कर में गांव में फंस चुका था। यदि मैं उसे अपनी बीमारी के बारे में बताती हूँ तो वह और भी ज्यादा परेशान होता। इसलिए यदि मैं उससे फोन पर बात भी करती तो बहुत ही संभल-संभल कर और उससे यही कहती कि नॉर्मल सिर दर्द सर्दी जुखाम है।ठीक हो जाएगा। तुम परेशान ना हो। लेकिन थोड़ी सी ही बीमारी की जानकारी पाकर बब्बू लगातार जिद करने लगा दिल्ली आने के लिए। वहीं अन्य रिश्तेदार पिथौरागढ़, लोहाघाट से जो भी फोन करते थे उन से भी मैं बहुत संभल कर बात करती थी, ताकि उनको पता ना चले कि मैं किसी तरह से बीमार हूं। किसी डॉक्टर या हॉस्पिटल में जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी कि यदि डॉक्टर को दिखाने जाती हूं और कोई ऐसी बात सामने निकल कर आती है जो कि कोविड-१९ से संबंधित हो तो फिर पता नहीं डॉ मुझे किस हॉस्पिटल में शिफ्ट कर दें? लेकिन एक तरफ दूसरी चिंता मैं तो परेशान थी यही सब सोच-सोच कर के जान्हवी अकेले कैसे मेरी देखभाल कर पाएगी छोटी सी बच्ची बेचारी ..। उधर नरेंद्र को वापस ड्यूटी पर बॉर्डर जाना था और वह मुझे इस हाल में छोड़ कर जाने के लिए मजबूर थे क्योंकि भारतीय सैनिक की ड्यूटी उनकी कर्तव्यनिष्ठा उनके सामने आ रही थी। जिसे निभाना उनका दायित्व था। और वह मुझे बीमारी की उसी हालात पर छोड़ कर चले गए। लेकिन वह लगातार फोन के माध्यम से पल-पल कि मेरी खबर ले रहे थे एवं जान्हवी को यह कह रहे थे कि बेटे मम्मी का बराबर ख्याल रखना बेटा बब्बू भी परेशान था और मैं भी परेशान थी।
मेरी बेटी जान्हवी बार-बार मुझे कहीं पाउडर सूंघने के लिए दे रही थी तो कहीं फूल सुंघा रही थी और मुझसे पूछती कि माँ तुम्हें खुशबू महसूस हो रही है क्या? फूल की या पाउडर की? और मैं झूठ में कहती हां ताकि मेरी बेटी परेशान ना हो घबराए ना हड़बड़ाए लेकिन किसी तरह से हिम्मत जुटाकर मैं बीमारी के पांचवे में छठे दिन पास के ही हॉस्पिटल में गई जो कि आर्मी के फैमिली कैंप में ही होता है डॉक्टर को दिखाया डॉक्टर ने मुझे बहुत सारी दवाएं दी कैल्शियम की और उन्होंने कहा कि नॉर्मल है घबराने की जरूरत नहीं है। चार-पांच दिन बाद आकर फिर दिखा देना मैं तो धीरे-धीरे ठीक हो रही थी लेकिन किसी डर से बाहर घूमने तक नहीं निकलती थी। बालकनी तक में नहीं निकलती थी। शायद कोई मुझे देखकर अनुमान लगा ना ले कि मैं बीमार हूं। लेकिन मेरे पारिवारिक सदस्य मेरे पति मेरी बेटी-बेटे और मेरे लेखक मित्र ने मेरा इतना हौसला बढ़ाया कि मैं भी पूरी तरह से ठीक हो गई। ठीक होने के बाद जब पहली बार पति नरेंद्र से बात हुई तो मुझे महसूस हुआ कि उनका गला रुंधा हुआ था और वो कह रहे थे कि मुझे माफ करना मीना मैं एक सैनिक हूँ। मुझे आप अपनों से अपने देश की चिंता कहीं ज्यादा है। एक फौजी होने के नाते मैं अपनी देश की सेवा के लिए तुम को बीमारी की हालत में छोड़ आया था। यह देश मेरे लिए एक परिवार ही है।
मुझे उस दिन समझ आया कि सचमुच एक फौजी के लिए देश से बढ़कर कुछ नही होता है फौजी सिर्फ अपने परिवार की ही नहीं बल्कि देश में रह रहे सभी परिवार के लिए सोचता है, और उनकी सुरक्षा के लिए सदैव तत्पर रहता है। खुद के साथ चाहे जो भी विसंगति हो। मेरे दिल में नरेन्द्र के लिए इज्जत और सम्मान और भी ज्यादा बढ़ गया है।
एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली)
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