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होमियोपैथी…. प्रयोग नहीं विज्ञान

प्रीति शर्मा “असीम”
सोलन हिमाचल प्रदेश

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विश्व होमियोपैथी दिवस’ प्रत्येक वर्ष १० अप्रैल को सम्पूर्ण विश्व में मनाया जाता है। होमियोपैथी के आविष्कारक डॉ. हैनीमैन की जयंती १० अप्रैल को विश्व होमियोपैथी दिवस के रूप में मनायी जाती है। होम्योपैथी के संस्थापक जर्मन चिकित्सक डॉ. क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैमुअल हैनीमैन महान विद्वान, भाषाविद् और प्रशंसित वैज्ञानिक थे।

होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति दुनिया के १०० से अधिक देशों में अपनाई जा रही है। भारत होम्योपैथी के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी देश है कई महामारियो का उपचार होम्योपैथी से संभव है। लेकिन अभी तक इसका पर्याप्त इस्तेमाल नहीं हो सका है।

होमियोपैथी को लोकप्रिय बनाने का आयोजन किया जाता है। होमियोपैथी के उपचार का आधार खासतौर पुराने तथा असाध्यय कहे जाने वाले रोगों के लिये रोगी की केस हिस्ट्री लेते समय उनके लक्षणो को प्राथमिकता दी जाती है।
सभी पैथियों में दवाइयां मूलतः सब वही होती हैं, भेद केवल इनके निर्माण एवं प्रयोग में होती है। इस विधि में औषधि के स्थूल रूप को इतने सूक्ष्मतम रूप में परिवतर्ति कर दिया जाता है कि दवा का स्थूल अंश तो क्या उसके सूक्ष्म अंश का भी पता नहीं चलता। होमियोपैथी की शक्तिकृत दवा ६ शक्ति के बाद ३०, २००, १०००, १००००, ५०००० तथा १ लाख पोटेन्सी वाली होती है।

होमियोपैथिक दवाओं का परिक्षण कौन सी दवा स्वस्थ व्यक्ति में क्या लक्षण पैदा करती है, डाॅ. हैनीमैन ने इसका भी अविष्कार किया। उन्होंने स्वंय और अपने सहयोगियों पर परीक्षण करने के बाद जो-जो लक्षण पैदा हुए, उनका सम्पूर्ण रिकार्ड बनाया। चूंकि होमियोपैथिक दवा परिक्षण का आधार स्वस्थ मानव शरीर रहा है, अतः जब तक इंसान पृथ्वी पर है, हौमियोपैथी की वे ही दवाइयाँ चलती रहेंगी।

होमियोपैथी चिकित्सा-प्रणाली के कुछ रोचक तथ्य होमियोपैथिक दवा की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती है। यदि इन दवाइयों को धूप, धूल, धुंआ, तेज गन्ध व केमिकल्स से बचाकर रखा जाए तो यह दवा कई वर्षों तक चलती रहेगी। इन दवाओं का कोई साइड अफैक्ट नहीं होता है। इन दवाओं से कोई विशेष परहेज नहीं होता है। दवा को लेने के आधा घंटा पहले और आधा घंटा बाद तक कुछ खाना-पीना नहीं चाहिए। कोई अन्य दवा के साथ होमियोपैथी दवा नहीं लेनी चाहिए। होमियोपैथी चिकित्सा के बारे में भ्रांतियाँ होमियोपैथी दवा देर से असर करती है।
होमियोपैथिक चिकित्सा में पहले रोग को बढाया जाता है। होमियोपैथिक दवा काफी देर बाद असर करती है। होमियोपैथिक दवा बार-बार दिन में कई बार लेनी होती है। ऐसी कई भ्रान्तियाँ एवं गलत धारणाओं के कारण लोग कई बार तात्कालिक लाभ के लिए इधर-उधर भटकने के बाद अन्त में लाभ के लिए होमियापैथी चिकित्सा के लिये आते हैं जब वे इस चिकित्सा विधि से लाभान्वित होते हैं तो फिर इसे छोड़कर दूसरी पद्धति नहीं अपनाते हैं। विश्व होमियोपैथी दिवस के दिन देश के सभी होमियोपैथी कॉलेजों में संगोष्ठियों, कांफ्रेंस, शिविर और रोड शो का आयोजन किया जाता है तथा जनमानस के बीच होमियोपैथी को लोकप्रिय बनाने का आयोजन किया जाता है। विश्व होमियोपैथी दिवस के अवसर पर विज्ञानं भवन, नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय होम्योपैथिक सम्मेलन का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश-विदेश के अनेक प्रतिनिधि भाग लेते हैं।

सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य भारत एवं विश्व में होमियोपैथी की दशा एवं दिशा, राष्ट्रीय नीतियों के विकास की रणनीति तैयार करना, होमियोपैथी औषधियों की सुरक्षा, गुणवत्ता और प्रभावकारिता को मजबूत करना और विभिन्न देशों में स्वास्थ्य देख-भाल सेवाओं में होमियोपैथी को उचित स्थान दिलाकर सार्वभौमिक स्वास्थ्य के लक्ष्य को प्राप्त करना है। होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति दुनिया के सौ से अधिक देशों में अपनाई जा रही है। भारत, होमियोपैथी के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी देश है। कई महामारियों का उपचार होम्योपैथी से संभव है, लेकिन अभी तक इसका पर्याप्त इस्तेमाल नहीं हो सका है।

होमियोपैथी को लोकप्रिय बनाने का आयोजन किया जाता है। विश्व होमियोपैथी दिवस के अवसर पर विज्ञानं भवन, नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय होम्योपैथिक सम्मेलन का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश-विदेश के अनेक प्रतिनिधि भाग लेते हैं।
सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य भारत एवं विश्व में होमियोपैथी की दशा एवं दिशा, राष्ट्रीय नीतियों के विकास की रणनीति तैयार करना, होमियोपैथी औषधियों की सुरक्षा, गुणवत्ता और प्रभावकारिता को मजबूत करना और विभिन्न देशों में स्वास्थ्य देख-भाल सेवाओं में होमियोपैथी को उचित स्थान दिलाकर सार्वभौमिक स्वास्थ्य के लक्ष्य को प्राप्त करना है।

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परिचय :- प्रीति शर्मा “असीम”
निवासी – सोलन हिमाचल प्रदेश


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