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घर वही, जहाँ बुढ़ापा खिलखिलाये

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़ (हरियाणा)

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                                  किसी ने सच ही कहा है कि जिस घर मे बुजुर्ग सन्तुष्ट व प्रसन्नचित्त रहते हैं, वह घर धरती पर स्वर्ग के समान है, परन्तु आज आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में रिश्तों में उत्पन्न व्यवहारिकता व आपसी सामंजस्य व घटती सम्मान की भावना के कारण ऐसा स्वर्ग अब अपवाद का रूप लेता जा रहा है। ऐसी परिस्थितियों में अब बुजुर्गों को जीवन के अर्धशतक के नज़दीक आते आते सिर्फ अपने भविष्य के प्रति सचेत हो जाना चाहिये, कुछ नहीं पता हालात क्या मोड़ ले लें, स्वयं को आर्थिक रूप से मजबूत कर, स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखते हुए आशा व विश्वास से परिपूर्ण ऊर्जावान बनाये रखना होगा तभी तो बुढ़ापा खिलखिलाहट से भरा होगा, उसकी जगमगाहट अंदर तक आपको जाग्रत कर देगी। आज बच्चों की भी अपनी विवशताएँ है, कम आमदनी, बढ़ते खर्चे, चकाचैंध से भरा जीवन जीवन जीने की अभिलाषा, आरामपरस्त वातावरण में रहने की ललक ने उनकी सोच को सीमित कर दिया है। बूढ़े माँ बाप उन्हें उनकी उन्मुक्त जिन्दगी में खलल डालते प्रतीत होते हैं, आज ऐसे भाग्यशाली माँ बाप बहुत कम है जिनके संघर्ष को सन्तान अनुभव करती हो, अधिकतर तो जीवन में थोड़ा सा मुकाम पाते ही कह देते हैं तुमने हमारे लिये किया ही क्या है, नई पीढ़ी की सोच पूरी तरह से आत्मकेंद्रित हो गई है।

इसलिये आज के समय में बुजुर्ग माता पिता को खुद को सबल आर्थिक व मानसिक रूप से मजबूत रख कुछ बातों का ध्यान रखना होगा कि अपने बच्चों की जरूरत से ज्यादा फिक्र ना करें, उन्हें अपना मार्ग स्वयं खोजने दें, अपना भविष्य उन्हें स्वयं बनाने दें, उनकी इच्छाओं, आकांक्षाओं व सपनों के गुलाम आप न बनें। बच्चों से प्रेम करें, परवरिश करें, उन्हें वस्तुएं भेंट भी दें लेकिन कुछ आवश्यक खर्च अपनी दबी हुई इच्छाओं पर भी करें। जन्म से ले कर मृत्यु तक कष्ट सहते रहना ही जीवन नहीं है, यह ध्यान रखना ही होगा।

आप जीवन के छह दशक पार कर चुके, अब जीवन व आरोग्य से खिलवाड़ करके पैसे कमाना अनुचित है, क्योंकि अब इसके बाद पैसे खर्च करके भी आप आरोग्य नहीं खरीद सकते। इस आयु में दो प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण हैं, पैसा कमाने का कार्य कब बन्द करें और कितने पैसे से अब बचा हुआ जीवन सुरक्षित रूप से कट जायेगा, स्वास्थ्य ठीक रहे तो आवश्यकताओं को सहज में ही पूरा किया जा सकता है। अपने आपको अपनी अभिरुचि की गतिविधियों में व्यस्त रखिये, मित्रों व पड़ोसियों के साथ अच्छे सम्बन्ध बना कर रखिये, हंसते हंसाते रहें, एक दूसरे की तारीफ करें, क्रोध को अपने से दूर रखें। जितनी आयु बची है उतनी आनन्द में व्यतीत करें। दोस्ती व दोस्त संभाल कर रखें। रिश्तों को संभाल कर रखें, आदर व प्रेम बांटे, पहाड़ की चोटी के परे जा कर सूरज वापस आ जाता है, पर दिल से दूर गये प्रियजन वापिस नहीं आते।

बच्चों को अपने ही बीवी, बच्चों में मस्त रहने दो। अधिक छींटाकशी सम्बन्धों में दुराव पैदा करती है। सास बहू जैसे नाज़ुक रिश्ते में तो यह बहुत जरूरी है जब बेटा मज़बूरी या स्वभाववश, अनावश्यक रूप से सिर्फ उसका ही पक्ष ले तो परिवार में सुख शान्ति बनाये रखने के लिये सम्मानजनक दूरी बनाना ही बेहतर है, इसी में ही दोनों का भला है। इससे प्यार भी बना रहेगा और समय पा कर रिश्तों में प्रगाढ़ता भी अवश्य आयेगी।

बुढ़ापे में मस्ती भरी खिलखिलाहट के लिये मौन को अपनी दिनचर्या का महत्वपूर्ण अंग बना लो, जब आप की वाणी से त्रुटिपूर्ण भावों का प्रचार, प्रसार हो रहा हो, जब आप को लगे कि किसी व्यक्ति को आपके शब्द चुभेंगे, जब आप को लगे मुझे ऐसा नहीं बोलना चाहिए था, तब भी जब आप आक्रोश के वेग में आ रहे हों, मौन तब तो बहुत जरूरी है जब आप स्वयं के प्रति आत्मग्लानि से भरे हुए हों व आप को लगे कि बिना चीखे कुछ बात नहीं बोल सकते। ऐसा करके ही आपका घर आपको मकान प्रतीत नहीं होगा जिसमें बस प्राणी बसते हैं अपितु वह एक दूसरे की परवाह करता हुआ परिवार होगा। यह सच है बेटा आगे बढे,खूब आनंद से जीये इसके लिये माँ बाप अपनी ही जिन्दगी पूरी तरह भूल जाते हैं, वो मौत से नहीं बुढ़ापे से डरते हैं, अपने दूर हो जाते हैं, जिन्दगी दूसरा मौका देती है, पर माता पिता नहीं।

इच्छाशक्ति व आत्मबल से ही बुढ़ापे को मस्ती से भरी जिन्दगी में बदला जा सकता है, बस बुजुर्ग माँ बाप आपसी सामजंस्य, निष्ठा, समर्पण से अपने जीवन को एक सुनियोजित दिनचर्या में ढाल कर जियें, अतीत में हुई भूलों, गलतियों की बार बार चर्चा कर अपने वतर्मान व भविष्य को बिगड़ने न दें, सारी जिन्दगी तो कष्ट सह कर बच्चों को सँवारने में लग गई अब तो आराम से, सुख से, चैन से रह लें। यह एहसास रहे कि जब बच्चे अपने परिवार में मस्त हैं, तो हम क्यों न मस्त रहें, आखिर हम दोनों का भी तो ये परिवार है आखिर हमारे जीवन की शुरुआत भी तो ऐसे ही हुई थी, तो अब अंत की खूबसूरत शुरुआत क्यों न हो। आप दोनों को खुश व स्वस्थ देख नज़दीक या दूर रहे बच्चे भी आप से दूर नहीं रह पाएंगे फिर अवकाश या त्यौहार या जन्मदिन के अवसर पर घर मे रौनक होगी, अपनापन होगा, आकर्षण होगा तभी तो कह पाएंगे- “घर वही जहाँ बुढापा खिलखिलाये”!

परिचय :- राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’ कवि,लेखक व स्वतंत्र पत्रकार
निवासी : बहादुरगढ़ (हरियाणा)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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