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घर एक मंदिर

वीणा वैष्णव “रागिनी” 
कांकरोली

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घर एक मंदिर है, इसे मंदिर ही बना रहने देना।
घर मंदिर होता, एक उदाहरण तू भी बन जाना।

मात-पिता प्रभु मान, सिस तू चरण झुका देना।
खून से सींचा उसे, बस तू थोड़ा प्यार भर देना।

कैदखाना नहीं यह पागल, यह है स्वर्ग समान।
अनजाने में ही कुछ नादान, कर रहे हैं अपमान।

शून्य जैसा सबका जीवन,ना कीमत शून्य की।
संग सदा अपनो रह, अनमोल स्वत: बन जाना।

संबंधों की गहराई को, सदा ही महसूस करना।
ईश्वर की श्रेष्ठ रचना, थोड़ा विवेक काम करना।

चिंता चिता एक समान, यह सदा याद रखना।
खुद की खुशी खातिर, मां बाप को ना दर्द देना।

प्यार से पाला तुझे ,चिंता और कोई न जताना।
दिखावा सब करेंगे, हकीकत तो वहां ही पाना।

करती वीणा एक विनती, जीवन ना नर्क बनाना।
बहुत सहा उन्होंने, अंत समय कुछ सुख देना।

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परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव “रागिनी” वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है।


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