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होलिका दहन

प्रभात राजपूत ”राज” गोंण्डवी
गोंडा (उत्तर प्रदेश)

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होलिका दहन की
कहानी पुरानी है,
यह असुर राज की
बहन से शुरू हुई कहानी है।।

होलिका दहन का
पर्व हमें संदेश देता है,
भक्तों पर अत्याचार होने पर
भगवान स्वयं अवतार लेता है।।

होलिका दहन का राज
हमें आकर्षित करता है,
जो दुष्ट होता है, वह स्वयं की
अग्नि में ही जलता है।।

यह त्योहार फाल्गुन मास की
पूर्णिमा को मनाते हैं,
सब लोग मिलकर
होली का जलाते हैं।।
इस त्यौहार के अनेक नाम हैं,
धुलेंडी, धुलडी, धूलि
विख्यात नाम है।।

होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी,
यह दुष्ट और असहन थी।।
भगवान खुद को
हिरण्यकश्यप समझता था,
वह मनुष्य को
जानवर समझता था।।

होलिका को न जलने का
वरदान प्राप्त था,
इसीलिए होलिका को
अभिमान व्याप्त था।।

भक्त प्रहलाद को
गोद में लेकर बैठ गई,
भक्त बाहर आ गया
होलिका जल गई।।

अनेकों कहानियां
और प्रचलित हैं,
जो सच सच है,
वह लिखित है।।

परिचय :- प्रभात राजपूत ”राज” गोंण्डवी
निवास – गोंडा (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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