मंजू लोढ़ा
परेल मुंबई (महाराष्ट्र)
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राजस्थान के एक छोटेसे गाव में उसका जन्म हुआ। पर उसके माता पिता ने निश्चय कर लिया कि, वह अपनी बेटी को कम से कम हाईस्कूल तक तो जरूर पढा़येंगे। बगल के गांव मे एक स्कूल था, माँ सुबह जल्दी उठकर, घर के सारे काम निपटाकर बच्ची को स्कूल लेकर जाने लगी। ज्यों-ज्यों कला बढी़ होती गई, नाम के अनुरूप, वह कई कार्यों मे दक्ष होती गयी। चित्रकारी, सिलाई, कशीदा, मेंहदी लगाना, रंगोली मांड़ना तथा साथ ही घर के कार्य में मां का हाथ बंटाने लगी। सुरत और सीरत दोनों ही सुंदर। और जब हाईस्कूल में दसवीं में वह पुरे स्कूल में अव्वल आयी तो अगल-बगल के गांवो तक उसकी चर्चा होने लगी।
माँ-बाप को अब उसके विवाह की चिंता सताने लगी। कला आगे पढ़ना चाहती थी, पर गांव मे कॉलेज नहीं होने से उसे अपनी पढाई छोड़ देनी पडी़। पर उसे जहाँ से ज्ञान मिलता, वह उसे प्राप्त करती। जनवरी २०१६ मे एक दिन मुंबई में काम करने वाले गांव के एक लडके से उसका विवाह हो जाता है। पति किसी के घर में रसोई का काम करता है। कला ने मुंबई के बारे में बहुत सुन रखा था और मोबाईल के माध्यम से मुंबई को देख भी लिया। मन ही मन वह मुंबई जाने को बेताब थी। एक दिन दोनों मुंबई आ जाते है। एक छोटी सी खोली, १५० स्कैवर फिट की जगह, वहाँ पति शमशेर अपनी नई नवेली को लेकर प्रवेश करता है। घर देखकर कला को एक झटका लगता है। कहाँ गांव का खुला माहौल, बडा़ सा घर, आंगन और कहाँ यह छोटा सा घर। उसके सपनों को यह पहला झटका लगता है। पर वह अपने को संयत रखती है, अपने घर को एक नया रूप देती है। दो-चार दिनों के बाद पति काम पर जाने लगा। कला अब घर पर एकदम अकेली हो गयी, पुरा दिन क्या करे। एक दिन पति से बोली, ‘अजी सुनिये मैं पुरा दिन घर में बैठे-बैठे बोर हो जाती हूँ। आप कहे तो, मैं भी कुछ काम करूँ, मुझे बहुत सारी चीजें आती है। आप अगर अपनी मालकिन से पुछकर मुझे भी वहाँ काम पर लगा दे, या फिर मैं अडो़स-पडो़स के बच्चों कुछ सिखा दूं। मेरा मन भी बहल जायेगा, दो पैसे भी घर में आ जायेंगे।” पति कहता है, “ठीक है पुछकर बताऊँगा।” मालकिन के हाँ बोलने पर कला उनके घर जाने लगी, वहाँ पर उसने घर को बडे़ अच्छे से संभाल लिया। साथ ही उस घर के सभी बच्चों को चित्रकारी, रंगोली आदि कलाएं सिखाने लगी। धीरे-धीरे बच्चों के मित्र, सहेलियाँ भी उसके पास आने लगे। दोपहर में आराम के दो घंटे वह बच्चों को सीखाने का कार्य करती। उसे अतिरिक्त आय होने लगी। शनिवार और रविवार को अपने घर के बगल के बच्चों को पढा़ने का कार्य तथा विभिन्न कलाएं सिखाने लगी।
वह दिल की बहुत नरम थी। अगर कोई बच्चे फीस नहीं दे पाते तभी उनको निःशुल्क पढा़ देती। हर एक के दुःख-सुख में काम आती। पूरे मोहल्ले में लोग उसे जानने लगे, उसका आदर करने लगे। महिने मे लगभग १५००० से २०००० वह पा जाती। इन रूपयों को वह जमा करने लगी। पति के कमाई से घर चलाती और उसमें भी बचत करती।
फिर आ गया “२०२० का लॉकडाऊन” इस की घोषणा सुनते ही, कला अपने पति से बोली, “चलों अपने गाँव चलते है’ और दोनो छुट्टी लेकर गाँव की तरफ चल पडें। रास्ते मे खर्च के लिए कुछ रूपये साथ में रख लिये। बाकी बैंक में जमा थे ही।
रास्ते में एक परिवार की दीन अवस्था देखकर उसने उनकी भी मदद की। वह सकुशल गांव पहुंच गये। वहाँ पहुँचकर उसने एक नई शुरूआत की। सभी महिलाओं को इकठ्ठा किया। और मास्क बनाने की ट्रेनिंग शुरू कर दी। घर पर पडे़ पुराने कपडों को धोकर उन्होंने मास्क बनाये, खुद और खुद के परिवार की सुरक्षा हेतु सबको मास्क लगाने को दिये।
अगल-बगल के कस्बेवाले भी उनके पास आकर मास्क खरीदने लगे। एक व्यापारी ने अपने कारखाने से उन्हें कपडों का थान लाकर दिया “कहा कि इसके मास्क बनाओ।” इतना सारा ऑर्डर पाकर सब हर्षित हुये।
कला ने विभिन्न तरह के मास्क बनाये किसी में कशीदाकारी की। किसी ने कुछ और डिजाइन. कुछ सरकारी कर्मचारीयों ने भी वह मास्क खरीदे। कई लोगों को रोजगार मिल गया।
कला ने अब मन ही मन सोच लिया है, उस कस्बे में हाईस्कूल बनाना, उसने ठान लिया है,जब तक माहौल ठीक नहीं होता करोना वायरस का तोड़ नहीं मिलता, वह शहर नहीं जाकर यही के लोगों को विशेषकर लड़कियों को शिक्षित करेगी। उसका पुरा कस्बा ग्रीन झोन में है, वहाँ कोई भी कोरोना का मरीज नहीं है। अब वह गांव में घुम-घुमकर सबको अपनी सेहत के पति जागरूक कर रही है, तथा साथ ही कोरोना से कैसे बचे, इस पर भी सतर्क कर रही है। मित्रों समाज की मदद करने के लिए जरूरतमंदों की सहायता करने के लिए बहुत पैसा होना बहुत धन दौलत होना आवश्यक नहीं है जरूरी है आपका दिल बड़ा होने की अक्सर हम सही समय का इंतजार करने की कोशिश करते हैं कि अच्छा समय आएगा, तब यह काम करेंगे. लेकिन जो समय है वही अच्छा है और उसी समय हमें अच्छे कार्य की शुरुआत कर देनी चाहिए। किसी ने क्या खूब कहा है “मैं इत्र से महकूँ यह आरजू नहीं, तमन्ना बस यही हैं कि मेरे किरदार से खुशबू आए.”. हम सब को भी कला की तरह बेहिचक दूसरों की मदद करने के लिए आगे आना चाहिए….
निवासी : परेल मुंबई (महाराष्ट्र)
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