२००७ में मुझे शासन स्तर (डाइट प्राचार्य श्री अनिल जी चतुर्वेदी और डीईओ-श्रीमती माया मालवीय इंदौर) से भारतीय सांस्कृ तिक प्रशिक्षण लेने केंद्रीय सांस्कृतिक स्रोत प्रशिक्षण (सीसीआरटी.) हैदराबाद भेजा गया। २१ दिनी प्रशि क्षण में हमने निर्मल पेंटिंग, मुखौटे बनाना और बुटीक प्रशिक्षण प्राप्त करने के साथ-साथ तमिल, तेलुगु, मलयालम, उड़िया, कन्नड़ भाषा के प्राध्यापकों के व्याख्यान सुने।
प्रारंभिक दिवस हमने उपसंचालक सीसीआरटी श्री पी.एन.बालन द्वारा सभी प्रशिक्षणार्थियों से पूछा कि यहां प्रशिक्षण अंग्रेजी में होगा तो हिंदी भाषी राज्यों के समस्त प्रशिक्षणार्थियों के साथ मैने भी अपना स्वर मिलाते हुए कहा-“श्रीमान हम हिंदी भाषी, विदेशी भाषा मे प्रशिक्षण ले यह उचित है क्या ? तब पी.एन.बालन बोले यहां वो लोग भी है जो हिंदी नही जानते या हिंदी कम आती है। तो हमने पुनः एक स्वर में कहा-“श्रीमान आप अंग्रेजी में व्याख्यान दे सकते है बशर्ते साथ-साथ हिंदी भी चलती रहे।
हमारी बात को मान लिया गया। उस दौरान अन्य भाषा भाषी शांत रहे।
प्रशिक्षण प्रारम्भ हुआ। विद्वान प्राध्यापक प्रतिदिन अलग-अलग भाषा के आने लगे और हिंदी अंग्रेजी व्याख्यान देते रहे। इसी के साथ प्रति दिवस एक-एक राज्य के नृत्य भी प्रतिष्ठित कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किये जाते रहे। जुबली हिल्स पर स्थित यह प्रशिक्षण संस्थान काफी ऊंचाई पर स्थित है। हैदराबाद को २००७ के पूर्व देश का सबसे स्वच्छ व सुंदर शहर का दर्जा हांसिल हुआ था। इंदौर नगरनिगम के पार्षदवृन्द और वरिष्ठ पार्षदों की एक टीम वहां का जायज़ा लेने गई थी। उस शहर को टॉलीवुड का शहर भी कहा जाता है। यहां फ़िल्म निर्माण के लिए अनेकों स्टूडियो बने हुए है। यहां – वहां फिल्मांकन होते हुए देखा जा सकता है। पुराना शहर धूल से सराबोर दिखा जबकि नया हैदराबाद स्वच्छ व सुंदर। हजारों की संख्या में सिटी बसें चलती है। प्रत्येक स्टैंड पर हर २ मिनट में अलग-अलग इलाकों की बसें आती-जाती रहती है। तकनीकी क्षेत्र में हैदराबाद बहुत आगे है। अनेको आई टी पार्क बने हुए है। हजारों की तादात में वहां कम्पनियां होकर आई टी विशेषग्यों की भरमार है। देखने के लिए लुम्बिनी पार्क,टाटा मेमोरि यल,सालारजंग म्यूजियम,किला कुतुब शाह, वहां से दूर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग (श्री सेलम) और रामोजी फ़िल्म सिटी बनी हुई है। हैदराबाद को मोतियों का शहर भी कहा जाता है जहां असली मोतियों का कारोबार बहुतायत में होता है।
प्रशिक्षण का चौथा दिन था, उड़िया भाषा के प्राध्यापक आये और उन्होंने पूछा व्याख्यान हिंदी में दूं या……बीच मे ही तमिल, तेलगु भाषी बोल पड़े-आई डोंट हिंदी…आई डोंट हिंदी…
तब प्राध्यापक बोले, यस आई इंग्लिश…… मैने अपने साथियों की आवाज़ बनते हुए कहा – आदरणीय आप बेशक अंग्रेजी में व्याख्यान दें किंतु मूल भाव हिंदी में बता देंगे तो हमे भी समुचित समझ के साथ लाभ मिल जाएगा। तब उन्होंने सिर्फ अंग्रेजी में ही व्याख्यान दिया। हमने विरोध स्वरूप आगे की कुर्सियों से उठकर अंतिम वाली कुर्सियां सम्भाल ली। हमारे अपने इस देश मे अपनी ही भाषा का विरोध और एक विदेशी भाषा का उपयोग– मुझे दु:ख हुआ और बाबू गुलाब रायजी का निबंध ध्यान में आया, उन्होंने उसमें लिखा है कि “पहले हमें अपनी मां की सेवा करना चाहिए,वक्त मिले तो ही पड़ोसी मां की सेवा करे। कोई अपनी मां को छोड़कर विदेशी मां की सेवा करे तो वह अपनी मां की कोख लजाने का कृत्य करता है।” यानी अपनी भाषा का सम्मान करें वक्त मिले तो अन्य विदेशी भाषा सीखना चाहिए।
उक्त घटना ने मुझे झकझोर दिया। मैंने हिंदी भाषा विरोधियों को हिंदी का पाठ पढ़ाने का फैसला कर लिया। मैं प्रोजेक्ट “मालवांचल” नाम से तैयार कर रहा था। डाइट प्राचार्य श्री अनिल जी चतुर्वेदी से फोन पर बहुत सारी जान कारी प्राप्त की और प्रोजेक्ट को और विस्तृत रूप देना प्रारम्भ किया। अचानक एक मित्र आंध्रप्रदेश के महाबलेश्वर से १५० किलो मीटर दूर निवासी मुरली ने आकर मुझसे कहा – “बैया मेरी मम्मी, मेरे पापा, मेरी बीबी और मेरे बच्चे सब बोत अच्ची हिंदी बोलते है” मुझे अचानक हिंदी विरोध वाली बात ध्यान में आई, तो मैने कहा-मुरली तुम और तुम्हारा परिवार बहुत अच्छा है। अपनी राष्ट्रभाषा, राजभाषा को सम्मान तो देते हो. वह बहुत खुश हुआ, फिर मैने कहा-मुरली हम दोनो मिलकर एक काम कर सकते है। “वह ठिगने कद और मजबूत काठी का गोल मटोल मुरली बोला बैया बोलो क्या करना है ? मैने योजना समझा दी। वह सहर्ष तैयार हो गया। कक्षा समाप्ति के बाद हम सब हमारे बेडरूम स्थल (आरामगाह) पर आए। कुछ देर बाद मैंने कहा मुरली सब को तुम्हारे पलंग के आस पास बुलवा लो, उसने सब को इकट्ठा किया और अपनी भाषा मे उन्हें कुछ बात समझाई। मैं भी उनके पास गया और बोला आप और हम सब इस देश के नागरिक है, यहां की हर एक वस्तु और प्रौद्योगिकी पर सबका बराबर अधिकार है। मुरली ने सबको तमिल, तेलुगु व मलयालम वालो को अंग्रेजी में अनुवाद कर बताया। फिर मैंने कहा देश की कितनी राष्ट्र भाषाएँ और कितनी बोलियां है ? सभी बोले आई डोंट नो …
मैने कहां- तेलगु किसकी राष्ट्र भाषा है तो आंध्रप्रदेश वालों ने कहा-हमारी,फिर ऐसे ही तमिल पर तमिल नाडु वाले बोले हमारी, मलयालम पर केरल वाले बोले हमारी वैसे ही कर्नाटक की कन्नड़ और उड़ीसा की उड़िया का भी बताया। फिर मैंने कहा-पाकिस्तान अगर केरल, उड़ीसा, तमिलनाडु, आंध्रा, आदि जगह पर बम डालेगा तब सारे भारतवासी क्या कहेंगे? पाकिस्तान क्या कहेगा? तब सारे एक साथ बोले भारत पर, हिंदुस्तान पर बम फेंका। फिर हम भाषावाद के चक्कर मे क्यों उलझे हुए है। जब पूरा देश
अनेकता में एकता,
भारत की विशेषता।
का नारा देता है तो फिर हम क्यों करते है ये हमारी वो तुम्हारी भाषा ?
अब सुनो-मेरी भाषा कौनसी है ?? सब एकटक देखने लगे। मेने बोलना शुरू किया– देश की समस्त भाषाएं एवम बोलियां मेरी अपनी है,हम जहाँ तक सीमित है वहीं तक कि सोचते है,आगे के बारे में हमें ज्ञान ही नही है।आप कभी इंदौर गए है ?तो जवाब मिला नहीं … फिर पूछा- सालासर बालाजी, महांकालेश्वर,सिलीगुड़ी,बड़ोदा,जयपुर,कश्मीर,……..सभी पर सबने नही कहा,मैंने फिर कहा आपको सम्पूर्ण भारतवर्ष की जानकारी ही नही है,आपने कुछ चुनिंदा स्थल ही देखे है,सैकड़ों बोलिया है उसके बारे में नही जानते तो फिर हिंदी भाषा का विरोध क्यों?
सब चुप हो गए। मैंने फिर बोलना शुरू किया,आपको यह सिखाया गया है कि हिंदी भाषी हमारी भाषाएँ नही सीखते और न ही बोलते ! या यह बताया गया कि हमने अगर इन्हें अपनी भाषा सीखा दी तो ये हमसे आगे निकल जाएंगे ?तब वे एक साथ बोल पड़े नही वर्मा जी,नही ! हमारा विरोध है हिंदी भाषी राज्यों में हमारी भाषा नही बोलते,न ही सीखते…
तब मैं बोला -मेरे सभी भाईयों को मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में आमंत्रित करता हूँ ,आप इंदौर आइए और अपनी भाषाओं की कोचिंग शुरू कीजिए। पहला कोचिंग विद्यार्थी मैं रहूंगा। आपके लिए हाल, निवास की व्यवस्था के साथ कोचिंग के लिए विद्यार्थियों की भी व्यवस्था करवा दूंगा।आइए हम सिखाइये तमिल, तेलगु,कन्नड़. ….इस बीच तमिलनाडु के कन्नन ने खड़े होकर मुझे गाल पर एक पप्पी दी और सीने से लगाकर कहने लगा आई एक्साइटेड माय ब्रदर….. दशामूर्ति, शिवा रामा कृष्णा आदि-आदि ने सभी ने सॉरी कहते हुए खेद प्रकट किया। फिर मैंने मजाकिया मुड़ में पूछा तमिल लोग हमारे इलाकों में आते है तो हिंदी बोलते है।अगर हम तमिल नाडु आये और हमें कोई बात जानना है हम हिंदी में पूछे और कोई भी जवाब नही दें तो हम क्या करें? वो तो नो-नो कह के निकल लेंगे,तब कन्नन बोला-एक झापड़ देना अगर उसको हिंदी आती होगी तो वह बोल पड़ेगा-क्यों मारा ? सब हंस पड़े.. मैंने कहा अगर हिंदी नही आती होगी तो ! वह हमारी जमकर पिटाई कर देगा…भोजन के लिए सन्देश प्रसारित हुआ,हम सब चल दिये मेस की ओर…
सातवें दिवस से हर राज्य का प्रस्तुतिकरण करना प्रारम्भ हुआ समय ३० मिनिट निर्धारित किया गया। १२ दिन का प्रशिक्षण हो चुका था ५ राज्यों की प्रस्तुतियां हो चुकी थी। देश की ख्यातनाम हस्तियां ओडिसी नृत्यांगना श्रीमती किरण सेगल,श्रीमती ललिता रामचंद्रन,कथक नृत्यांगना-श्रीमती मंगला भट्ट,भरत नाट्यम -श्रीमती गीता गणेशन अपनी प्रस्तुतियां दे चुकी थी। १३ राज्यों के ६३ शिक्षक प्रशिक्षण ले रहे थे। मध्यप्रदेश से मैं अकेला,वैसे ही गुजरात से किरणभाई पटेल,महाराष्ट्र से पाटिल, राजस्थान से अरविंद पाठक पंड्या,प्रितेश आदि ८,बिहार झारखंड से २-२, उत्तरप्रदेश उत्तरांचल से ३-३ शेष अन्य राज्यों से थे।मध्यप्रदेश की ओर से मैंने ३० की बजाय ४० मिनिट प्रस्तुतिकरण की मांग की। मेरी मांग को मान लिया गया। मैंने अपना प्रस्तुतिकरण दिया,जिसमे लगभग सभी राज्य के साथियों ने मेरे साथ नृत्य (डांस) किया। हैदराबाद से ही वीडियो,फोटो ग्राफर करके अपने आयोजन को रिकार्ड किया। वहीं से फोटो मेल किया। मैं हैदराबाद ही था और यहां समाचार और फोटो प्रकाशित हुए। फिर प्रोजेक्ट जमा किया। काफी सराहना हुई-मैं गद-गद हो गया….
आज अन्ना यानी भोजन शाला प्रभारी को मैंने चने की दाल और दाल मोठ का नाश्ता करवाया,तो उन्होने मुझे भिंडी फ़्राय करके दी। सुबह का मीनू बैठकर आलू प्रोठे(आलू पराठा)तय कर वाया। चूंकि सावन माह चल रहा था। बारहों मासी शनि वार के साथ सावन के सोमवार को भी उपवास करने वालों को २ केले व बड़ा गिलास दूध मिलता था। हैदराबाद की बिरयानी विश्व प्रसिद्ध है, हमारे लिए अन्ना ने तोस के कड़क कवच की बिरयानी बनाकर खिलाई । हम हजारों किलो मीटर दूर थे पर माहौल घर जैसा बन गया था। सभी साथी सुबह उठते ही बोलना शुरू कर देते,वर्मा जी वडककम,नमस्कारम, राम,गुड मॉर्निंग आदि-आदि। मेरे द्वारा सबके साथ बैठकर बातें करना व सबमे समभाव पैदा करना बड़ी बात साबित हुई।
एक घटना घटित हुई……..
आज हम लुम्बिनी पार्क में दोबारा लेज़र शो देखने जाना था। सिरदर्द होने व बारिश की वजह से जाना नही हुआ और ७ बजे भाई का फोन आ गया कि लुम्बिनी पार्क और गोकुल चाट पर बम विस्फोट हुए है और २७ लोग मारे जा चुके है। दिल दहशत से भर गया और ईश्वर का धन्यवाद किया कि सिरदर्द और बारिश ने हमे बचा लिया।
आज पुनः उड़िया प्रोफेसर आये और उन्होंने एक प्रश्न दिया और उत्तर पूछा ?
प्रश्न :- एक छात्रा कॉलेज देर से पहुंची तो प्राचार्य ने उसे डांटकर गेट के बाहर कर दिया, प्राचार्य ने ठीक किया ?
अधिकांश ने हाँ में सिर हिलाया। मैं इस उत्तर से संतुष्ट नही था सो मैने उक्त उत्तर में हाँ में हाँ न् मिलाते हुए अपना उत्तर देने हेतु हाथ उठाया …. प्राध्यापक ने कहा – हां !उत्तर दीजिये.
मेने कहा वो प्राचार्य मूर्ख थे,जिन्होंने उक्त छात्रा से देरी का कारण पूछे बगैर गेट से बाहर कर दिया। छात्रा निश्चित रूप से धुंआधार आंसू बहाकर जलालत महसूस कर गई होगी ?
तो इसमें प्राचार्य ने नियम से उसे गेटआउट किया ,इसमे वो गलत कैसे ? मैं बीच मे ही बोल पड़ा- पुरुष होता तो बात अलग थी पर महिलाओं की कुछ विशेष परिस्थितियां भी अचानक निर्मित होती है ऐसे में प्राचार्य ने उन दिनों को याद करते हुए पहले देरी से आने का कारण जानकर ही कार्यवाही करना थी। जोरदार तालियों की गढ़- गढ़ाहट से मेरे उत्तर को सही साबित किया गया ।
१५ अगस्त को मेरे से झंडा वंदन करवाया गया। फिर कुछ लोग उस दिन श्री सेलम-भीमाशंकर के दर्शन करने गए तो हम रामोजी फ़िल्म सिटी देखने गए जो हैदराबाद से ४० किलो मीटर दूर है। पूरा फिल्मि स्तान रबर और खिलौनों से पटा पड़ा था। रास्ते भर कई जगह फिल्मांकन हो रहा था। वहां नकली शहर, नकली कारखाने देखे। डमी जेल के साथ,टेम्पो के पहिये लगी रेल और हवाई जहाज भी देखे। गुफा,फिल्मी सुरंग आदि देखी और वापस जुबली हिल्स पर आ गए।आज प्रशिक्षण की समाप्ति थी।सभी साथियों ने मेस में बैठकर नाश्ता किया। बहन मिश्रा ने मुझसे अचानक पूछा-भैया बिनोद आज के दिन है ?
तो मैंने कहा-राखी…. बस उन्होंने मधुर स्वर लहरियां छेड़ दी…”भैया मोरे राखी के बंधन को निभाना….और बस सारे साथियों की आंखों ने बरसना शुरु कर दिया। गमगीन माहौल हो गया।
फिर कई लोग इसी दिन रवाना हो गए, उनमें मेरा एक साथी कन्नन भी था,वह लड़की विदा होती है ऐसे आंसूं बहाकर गया -पर पप्पी देना नही भुला…
सूझबूझ का परिणाम यह रहा कि हिंदी भाषा के विरुद्ध बनी मानसिकता को आपस मे बैठकर बातचीत के माध्यम से बदल कर रख दिया बल्कि उन्हें अपना फेन भी बना लिया। तो हम सब मिलकर राष्ट्रभाषा हिन्दी के लिए बहुत कुछ कर सकते है।