विरेन्द्र कुमार यादव
गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश)
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पैसे के लिए तु दिन-रात काहे को जागे,
पैसे के पीछे काहे बार-बार तु भागे।
माना कि तु पैसे से बढ़ जाता सबसे आगे,
काहे तुमने छोड़ दिये पैसे के कारण
मानवता के रिस्तेऔर धागे।
काहे तु बार बार पैसे के पीछे भागे,
काहे तु पैसे के लिए दिन-रात जागे।
माना कि पैसे से तु बन जाता धनवान,
फिर भी इस दुनिया में सबसे बड़ा है भगवान।
काहे तु पैसे के लिए अधर्म पे अधर्म करता जाये,
सबसे बड़ा है मानव धर्म तु उसको काहे को भुलाये।
मानव तु पैसे के लिए दिन-रात जागे करता हाय-हाय,
एक दिन सब कुछ छोड़ के चल दोगे करके टाटा बाय-बाय।
काहे तु पैसे के पीछे भागा जाये,
काहे तु पैसे के पीछे भागा जाये।
अति से किसी का कभी भी हुआ नहीं भला,
दिन-रात मानव तु पैसे के पीछे-पीछे क्यू चला।
अति भला न पैसे कमाना,अति भला न पैसे का खर्चाना,
अति तुम कभी किसी का करना ना,
नहीं तो अन्त समय में पड़ेगा बहुत पछताना।
छोटे-बड़े सबसे बना के रखो अच्छा व्यवहार,
जहाँ सुई काम आवै वहां काम न आवै फार।
वीरेन्द्र यादव बता रहे जीवन का मूल सार,
यह कर्म भूमि है सारा संसार।
जैसा कर्म करोगे मानव, वैसा फल मिलेंगे भाय,
केवल पैसे के पीछे तु काहे को भागा जाय।
कर्म ही पुजा, मन ही मंदिर, मानवता सबसे बड़ा धर्म है,
मात-पिता की सेवा ही सबसे बड़ा सतकर्म है।
धर्म, अर्थ, काम, मोछ ही जीवन का उद्देश्य है,
यही उददेश्य की पूर्ति की प्राप्ति करना ही ईश्वर का आदेश है।
निवासी : गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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