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हिचकिचाहट

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केशी गुप्ता
(दिल्ली)

संजय और नीलम रिश्ते में यूं तो एक दूसरे के कुछ नही लगते थे, पर एक ही बिरदारी से थे . बस इसी नाते आपस में जान पहचान थी . फिर एक बार किसी करीबी रिश्तेदार के यंहा, उनके बेटे की शादि में नीलम का जाना हुआ . इतफाक से वंहा संजय भी आया हुआ था .
शादि से पहले की भी कई रस्में होती है, जैसे महंदी, सगन इत्यादि .  बाहर से आने वाले सभी अतिथी तीन , चार दिन का प्रोग्राम बना कर आए हुए थे . नीलम और संजय भी चार दिन के लिए दिल्ली से जयपूर पहुंचे थे . एक ही शहर के होने के बावजूद भी कभी दोनों का आमना सामना नही हुआ, पर यहां शादि के इन चार दिनों में वह एक दूसरे के बेहद करीब आ गए . दोनों को यूं लग रहा था जैसे वह एक दूसरे को बहुत पहले से जानते और समझते है .  चार दिन का समय अच्छे से गुजर गया . वक्त का पता ही नही चला फिर वापसी की उड़ान भरने का समय आ गया . दोनो ने एक दूसरे का नम्बर लेते हुए फिर मिलने की इच्छा जाहिर करते हुए अलविदा ली . दोनों अपनी अपनी गाड़ी से आए थे .  संजय के साथ उसका दोस्त भी था और उनका जयपूर से अजमेर जाने की प्रोग्राम था .
नीलम घर पहुंच तो गई  मगर उसे लगा जैसे उसका पीछे कुछ छूट गया, उसे अधूरापन सा महसूस हो रहा था .  रात बिस्तर पर लेटे भी बेचैनी महसूस हो रही थी .  रह रह कर संजय और उसकी बातें उसे सता रही थी . उसे संजय के फोन का इंतजार था , मगर फोन नही आया .  एक हफ्ता बीत गया और फिर  महीने .  नीलम को लगा संजय उसे, उस पल दो पल के साथ की तरह भूल गया . खुद फोन करने में वह हिचकिचाती रही .
फिर एक दिन अचानक नीलम और संजय का एक रस्ट्रां में आमना सामना हुआ . नीलम अपनी सहेलियों के साथ और संजय एक सुंदर व्यक्तित्व की महिला के साथ था . नीलम को देखकर संजय आगे बड़ा और मुस्कुरा कर बोला “कैसी हो नीलम” ?  ठीक हूं, नीलम ने जवाब दिया . तुम कैसे हो, मुझे लगा तुम मुझे भूल गए . नीलम ने कटाक्ष भरे स्वर मेें कहा
नही ऐसा नही है, तुम्हारे फोन का बहुत इंतजार किया .  फिर लगा शायद तुम मिलना नही चाहती, संजय ने उतर दिया .
खुद पहल करने में हिचकिचाहट थी कि कहीं तुम गलत न समझ लो
इतने में संजय के साथ आई स्त्री भी उनके समीप आ गई .  इन से मिलो, ये मेरी पत्नी कल्पना है .  पिछले महीने ही माता-पिता की इच्छा से शादि हुई है .  नीलम ने दोने को मुबारकबाद  देते हुए घर आने को कहा और फिर अल्विदा लेते हुए अपनी सहेलियों के साथ बाहर आ गई . मगर मन में एक ही सवाल था, आखिर क्यों हिचकिचाते रहे और एक दूसरे से सदा के लिए दूर हो गए .
काश उसने या संजय ने बिना किसी हिचकिचाहट के मन की बात मान, फोन कर लिया होता तो एक दूसरे को पा लिया होता

लेखक परिचय :- केशी गुप्ता लेखिका, समाज सेविका
निवास – द्बारका, दिल्ली


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