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संकोच

मनोरमा जोशी
इंदौर म.प्र.

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ह्रदय मध्य लघुरूप मे,
रहता मन संकोच,
किन्तु समय पर विशद हो
देता हमे दबोच।
रावण को संकोच ने,
किया जभी निज ग्रास,
जनक सुता को तब मिला
वन अशोक में वास।
हुयी विभीषण पर कृपा,
दिया न उसको मार,
हनुमान के साथ भी,
किया वहीं व्यवहार।
यही सरल संकोच ने,
ले ली दशमुख जान,
भीतर के इस दोष पर,
रक्खो पूरा ध्यान।

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लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है।
शिक्षा – स्नातकोत्तर और संगीत है।
कार्यक्षेत्र – सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान और सुशीला देवी सम्मान प्रमुख रुप से आपको मिले हैं। उपलब्धि संगीत शिक्षक, मालवी नाटक में अभिनय और समाजसेवा करना है। आपके लेखन का उद्देश्य-हिंदी का प्रचार-प्रसार और जन कल्याण है। कार्यक्षेत्र इंदौर शहर है। आप सामाजिक क्षेत्र में विविध गतिविधियों में सक्रिय रहती हैं। आपकी रचनाएँ हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) व एक काव्य संग्रह में प्रकाशित हुई है।

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