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धरोहर

सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.)

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हम सबके लिए
हमारे बुजुर्ग धरोहर की तरह हैं,
जिस तरह हम सब
रीति रिवाजों, त्योहारों, परम्पराओं को
सम्मान देते आ रहे हैं
ठीक उसी तरह
बुजुर्गों का भी सम्मान
बना रहना चाहिए।

मगर यह विडंबना ही है
कि आज हमारे बुजुर्ग
उपेक्षित, असहाय से
होते जा रहे हैं,
हमारी कारस्तानियों से
निराश भी हो रहे हैं।

मगर हम भूल रहे हैं
कल हम भी उसी कतार की ओर
धीरे धीरे बढ़ रहे हैं।

अब समय है संभल जाइए
बुजुर्गों की उपेक्षा, निरादर करने से
अपने आपको बचाइए।

बुजुर्ग हमारे लिए वटवृक्ष सरीखे
छाँव ही है,
उनकी छाँव को हम अपना
सौभाग्य समझें,
उनकी सेवा के मौके को
अपना अहोभाग्य समझें।

सबके भाग्य में
ये सुख लिखा नहीं होता,
किस्मत वाला होता है वो
जिसको बुजुर्गों की छाँव में
रहने का सौभाग्य मिलता।

हम सबको इस धरोहर को
हर पल बचाने का
प्रयास करना चाहिए,
बुजुर्गों की छत्रछाया का
अभिमान करना चाहिए।

सच मानिए खुशियां
आपके पास नाचेंगी,
आपको जीवन की तभी
असली खुशी महसूस होगी।

परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनियां, मनकापुर, जिला-गोण्डा (उ.प्र.)
वर्तमान निवास : शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव जिला-गोण्डा, उ.प्र.
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई.,पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
साहित्यिक गतिविधियाँ : विभिन्न विधाओं की कविताएं, कहानियां, लघुकथाएं, आलेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि का १०० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन।
सम्मान : एक दर्जन से अधिक सम्मान पत्र।
विशेष : कुछ व्यक्तिगत कारणों से १७-१८ वषों से समस्त साहित्यिक गतिविधियों पर विराम रहा। कोरोना काल ने पुनः सृजनपथ पर आगे बढ़ने के लिए विवश किया या यूँ कहें कि मेरी सुसुप्तावस्था में पड़ी गतिविधियों को पल्लवित होने का मार्ग प्रशस्त किया है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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