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बेबस

राकेश कुमार तगाला
पानीपत (हरियाणा)
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आज, मेरा चिंटू नज़र नहीं आ रहा हैं, पापा ने ऑफिस से आते ही दीपा से पूछा? दीपा बिना कुछ कहें ही किचन में चलीं गई। वह बड़ा हैरान रह गया! उसे लगाआज जरूर “दाल में कुछ काला है”।
दीपा, हाथ में चाय का कप लिए उसके सामने खड़ी हो गई। लो चाय, उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। क्या हुआ, दीपा, कुछ कहोगी या नहीं? क्या कहूँ, आप पर तो किसी बात का कोई असर नहीं होता? वह चुपचाप सब सुन रहा था।
अच्छा, छोड़ो क्या तुम मेरे साथ पार्क में चल रहीं हो? क्यों, क्या अब मेरी भी नाक कटवानी बाकी हैं? दीपा, क्यों छोटी सी बात को इतना बड़ा बनानें पर तुली हो? छोटी सी बात, सुबह चिंटू को रमेश जी, ने खूब खरी-खोटी सुनाई। तो क्या हुआ, वो हमारे पड़ोसी हैं, अगर बच्चे गलती करेंगे तो… वह इतना ही कह पाया था।
दीपा, का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसका चेहरा लाल हो गया, वह चिल्लाई वो तो मैं बीच में बोल पड़ी, वरना रमेश जी ने तो मेरे लाड़ले पर हाथ उठा ही दिया होता। दीपा, बात को समझा करो।
क्या, समझूँ, आप जैसे डरपोक की पत्नी होने से अच्छा तो….। कह कर वह अपने कमरे में चलीं गई।
पापा, चलो ना पार्क। पर बेटा पार्क में तो रमेश अंकल…. कहकर वह चुप हो गए। अरे, पापा आप सुबह की बात को लेकर अब तक बैठे हों। तभी दीपा भी अपने कमरें से बाहर आ गई। पापा, अंकल ने तो मुझें मेरी गलती पर समझाया था। इसमें बुरा मानने की क्या बात है?
पापा, रमेश अंकल हमेशा मुझें समझाते हैं, अपने पापा की तरह शान्त बनों, उनका स्वभाव कितना मिलनसार हैं? दीपा कभी अपने बेटे तथा कभी अपने पति की तरफ देख रही थीं। वह खुद से सवाल कर रही थीं कि सुबह वह अपने पति को कितना बेबस समझ रही थीं, अब वह खुद को बेबस पा रही थीं। दीपा जी, कभी-कभी अपनों के लिए बेबसी जरूरी होती हैं। मम्मी चलो ना पार्क, अब आप क्यों बेबस खड़ी हो, वह बेटे की बात सुनकर हँस पड़ी। आज तुम्हारे कारण, पर पति का चेहरा देखकर चुप्पी साध गई।

परिचय : राकेश कुमार तगाला
निवासी : पानीपत (हरियाणा)
शिक्षा : बी ए ऑनर्स, एम ए (हिंदी, इतिहास)
साहित्यक उपलब्धि : कविता, लघुकथा, लेख, कहानी, क्षणिकाएँ, २०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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