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हृदयहीनता की कामना

डॉ. उपासना दीक्षित
गाजियाबाद उ.प्र.
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काश! मैं
हृदयहीन हो जाऊँ ।
क्यों न मैं
हृदयहीन हो जाऊँ ।।
न हो मुझे किसी की
निष्ठुरता का अहसास
और न हो मुझे किसी की
आत्मीयता का आभास
किसी की मार्मिक
तकलीफों में
न हो शामिल
मेरा चेहरा
न देखूँ चिंता
ग्रस्त माथे की
लकीरों का डेरा
न सुनूँ किसी की
व्यथा का सफर
न हो द्रवित देख
टूटती बिजलियों
का कहर
मैं हर हलचल के प्रति
उदासीन हो जाऊँ
काश! मैं
हृदयहीन हो जाऊँ ।
क्यों न मैं
हृदयहीन हो जाऊँ ।।

संवेदना से परे
हो मुझमें
कठोरता का डेरा
मेरी प्रवृत्ति में बस जाए
गिरगिट का चेहरा
चुप रहूँ, न बोलूँ
देख मानवता पर चोट
जार-जार रोए कोई
सोचूँ, होगी आंसुओं में खोट
अनाचार की पराकाष्ठा पर
मूंद लूँ अपनी आँखें
प्रश्न न करूं चाहे घुट जाएं
किसी की साँसें
मैं अपने दायित्व के
प्रति भावशून्य हो जाऊँ
काश! मैं
हृदयहीन हो जाऊँ ।
क्यों न मैं
हृदयहीन हो जाऊँ ।।

सहती जाऊँ आतंक का
रटा-रटाया फेरा
या सत्तामदान्ध
तानाशाहों का पहरा
बूंद-बूंद रक्त
निचोड़ते यह शासक
काट दे यह जिह्वा
प्रश्न पूछ ले जो आकर
दम घुट रहा
काल खूब हंस रहा
सत्ता का लोलुप
लंबी सांँस भर रहा
या तो बोलूँ या फिर
भावशून्य हो जाऊँ
काश! मैं
हृदयहीन हो जाऊँ ।
क्यों न
हृदयहीन हो जाऊँ ।।

मन के किसी कोने में
धधकती है ज्वाला
बन के शिव शंभू
पी जाऊं सारा हाला
या दे दे शक्ति मेरा
ईश मुझमें इतनी
झोंक मैं गर्व तेरा
प्रज्वलित भट्टी में
लपट की तपन से
झुलस जाए सारा मैला
फिर न कोई खेल सके
भृष्टता का खेला
होम कर कलंक,
यज्ञधूम बन जाऊँ
या
शोषण के विध्वंस का
इतिहास बन जाऊँ
काश! मैं
हृदयहीन हो जाऊँ ।
क्यों न मैं
हृदयहीन हो जाऊँ।।

परिचय :- डॉ. उपासना दीक्षित
जन्म – ३० दिसंबर १९७८
पिता – स्व. ब्रजनन्दन लाल मिश्रा
माता – स्व. श्यामा मिश्रा
शिक्षा – एम. ए हिन्दी, पी. एच. डी
निवासी – गाजियाबाद उ.प्र.
शोध विषय – धूमिल की कविता में युग चेतना
प्रकाशन – शोध समीक्षा मूल्यांकन, शोध सरिता, शोध मंथन, इन्नोवेशन द रिसर्च काॅन्सेप्ट, समकालीन हिन्दी कविता एक अंतर्यात्रा, जनसंचार माध्यम पत्रकारिता परिप्रेक्ष्य एंव सम्भावनायें, कोरोना काव्य संग्रह आदि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशन।
संप्रति – अस्सिटेंट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, इंग्राहम इंस्टीट्यूट गर्ल्स डिग्री कॉलेज, गाजियाबाद उ.प्र.
घोषणा पत्र – मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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