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उसे कीर्ति तो मिली पर यश नही….

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रचयिता : विनोद वर्मा “आज़ाद”

नोट :– यहां “मैं”शब्द का उपयोग उस शिक्षक के लिए किया गया है,जिसको कीर्ति तो बहुत मिली पर यश नही।

“जीते जी तो नही पर मरने के बाद सिर्फ तारीफे ही होती है, वो लोग भी तारीफों के पुल बांधते है, जो ‘मुंह मे राम और बगल में छुरी’ रखकर चलते है।”

एक शिक्षक के घर 4 बेटों और 2 बेटियों ने जन्म लिया बेहद ईमानदार, सामाजिक शोषण का शिकार होते रहे व्यक्ति ने सिर्फ कर्तव्य पथ पर ईमानदारी से चलना प्रारम्भ किया। किराए पर घोड़ा लेकर घुटने-घटने कीचड़ को पार कर ५ किलोमीटर का रास्ता तय करना, बच्चों को पढ़ाना और वापस घर की बाट पकड़ना। ठंड और गर्मी में २४ इंची सायकिल का उपयोग करना। गोकलपुर, किशनगंज, क्षिप्राखटवाड़ी, बरोदा, तकीपुरा, बड़ौली, चमनचौराहा पर अध्यापन। ईमानदारी पूर्वक जीवन यापन के बावजूद जब बेटे की पढ़ाई पर व्यय का मौका आया तो ‘वेतन अत्यंत कम’ बेटे का स्वप्न चकनाचूर ७५०/-₹ पगार में से ४००-/-₹ खर्च करदो तो १० सदस्यों वाले परिवार का पेट पालना मुश्किल। मजबूर पिता ने पॉलिटेक्निक, आईटीआई. का खर्च वहन करने में असमर्थता जताई।
बहुत नाम था उनका जिधर देखों उधर उनके चर्चे होते थे। लोग घर पर उनके के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेने आते थे, पर उन्होंने अपनी व्यथा किसी को न बताई। बस प्रातः ५ बजे उठना, लाल दन्तमंजन का उपयोग कर गरारे करना, कंठ तक उंगलियां डाल कर जीभ व मसूड़े मांजना नित्य कर्म था। फिर दैनिक गति विधि से फ़ारिक होकर स्नान, बड़ा कप चाय फिर मन्दिर होते हुए विद्यालय। तेज आवाज ऐसी की आधा किलोमीटर तक आवाज गूंजे।
कीर्ति तो बहुत मिली पर यश नही। इसीलिए बेटों को अपने दम पर …..
एक कहावत हमेशा चलाते थे-
“छड़ी पड़े छम-छम,
विद्या आवे घम-घम।
घर का कारोबार बड़े बेटे के सुपुर्द कर स्वयं फ्री हो गए दुनियादारी से, और नौकरी प्यारी से। चूंकि बड़े बेटे ने भी असमंजस वाली स्थिति के बाद एक मौका नौकरी का छोड़कर दूसरा पुनः प्राप्त किया और आज्ञाकारी बेटे की तरह कर्तव्यस्थ हो गया।
पिता ने अपनी दीनता के साथ कहा बेटे नौकरी करले क्या भरोसा फिर मिले न मिले। तूने पहले भी एक मौका गवां दिया ! बाद में अगर दूसरी मिले तो ये छोड़ देना। दादीजी ने भी कहा- “हां बेटा अपना पुरखा भी उनाज गांव का था।” शायद दादी मुझे भावनात्मक रूप से छल (प्रेरित) कर रही थी। मैंने उनकी हाँ में हाँ मिलाई और चल दिया आटाहेड़ा की ओर…
कर्तव्य स्थल पर उपस्थिति दी,मुझे यह जानकर खुशी हुई कि जो प्रधानपाठक थे वे मेरे पिताजी के दोस्त थे और उनका बेटा मेरा दोस्त था। उमंगों-तरंगों के बीच एक बदमाश छात्र की धुनाई प्रथम दिवस ही विश्रान्ति पश्चात करदी। जो शिक्षकों को गालियां देकर भाग गया था। दूसरे दिवस विद्यालय जाकर सावधान-विश्राम यानी निर्देश देने का मौका मिला। कड़क तेज आवाज से निर्देश देने प्रार्थना करवाने के बाद मुझे आश्चर्य होने लगा। जो छात्र प्रथम दिवस गालिया, अन्ठीयां और नक्का मुठ चला रहे थे वे सब चुपचाप थे। सीधे अपनी-अपनी कक्षा में चले गए। अंदर कमरों से आवाज़ जरूर आने लगी….मैं भी माहौल को परख रहा था। कि इलाके के लोग और बच्चों के पालक किस किस्म के है!
कुछ दिनों के बाद सभी छात्रों को पढ़ाई के साथ खेलकूद और अन्य गतिविधियों के बारे में जानकारी देकर उनकी कुछ हरकतों के लिए नकली गुस्सा छात्रों पर प्रकट कर निर्देश दिए ।
बस! फिर क्या था अगले दिवस दांतों की सफाई, नाखून की कटाई और बालों तथा कपड़ों की चमकाई देखने को मिली।
नक्का मुठ, अंटियां, और गालियां गायब। समय पर प्रार्थना के बाद कक्षों में आज्ञाकारी छात्रों की भांति बैठकर बस्ता खोला और पढ़ाई शुरू।
मैंने मेरे वरिष्ठ शिक्षकों व प्रधानपाठक से कहा -“मैं ईमानदारी से मेहनत करूँगा समय पर आऊंगा लेकिन जाने का समय मेरा रहेगा। मैं विद्यालय समय के बाद भी बच्चों के बीच उनके भविष्य के लिए मार्गदर्शित करूँगा। मैं अपनी पढ़ाई के दौरान प्रत्येक स्पर्धाओं यथा-साहित्यिक, सांस्कृतिक और क्रीड़ा के साथ भाषण बाजी, कमेंट्री (आंखों देखा हाल) के साथ एथलेटिक्स (खेलकूद), धार्मिक व सामाजिक आयोजनों में भाग लेता रहा हूँ। और जो मैंने सीखा है उसका उपयोग मैं इन छात्रों के साथ करूँगा, पहले मैदान समतलीकरण करवाया, वॉलीबॉल, कबड्डी, खो-खो का मैदान तैयार किया। अर्धविश्रान्ति के समय बच्चों को खो-खो, कबड्डी का प्रशिक्षण पूरी छुट्टी बाद वॉलीबॉल सिखाना प्रारम्भ किया। गांव में चर्चे होने लगे। पढ़ाई के साथ ठुकाई भी उस वक्त चल रही थी। पालकों ने आकर तारीफ करते हुए सीधे-सीधे कहा-
“माड़साब, तम ने अय के इना स्कूल को हुलियों बदल दियो। दणभर इनकी गालीज चलती रेती थी ने घरे तो ई टिकताज नी। पर अबे ई घरे अय के पढ़ई भी करे ने घर को काम भी। ई अगर काम नी करे तो तमारो डर इनके जैसैय बताय ई काम का लिए दौड़ी पड़े।”
आज मन बहुत खुश था। गांव में नाम व काम की हलचल चल रही थी। आज ३१ जुलाई थी। सभी कक्षाओं के उपस्थिति रजिस्टर पर मैंने ही पूर्ति की थी। मेरी लिखावट की हमेशा तारीफ होती थी। हिंदी व अंग्रेजी के गोल-गोल, मोटे-मोटे घुमावदार अक्षर सबको अच्छे लगते थे। सो सब मे नाम लिखे सारे खानों की पूर्ति करी। कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति चाहता है प्रत्येक मेरे अनुसार हो, पर चुनींदा लोग ही समर्पण को तैयार रहते है।
मुझे प्रथम दिवस संस्थाप्रधान श्री शालिग्राम चौधरी ने कहा था–“देखो तुम मेरे दोस्त के बेटे हो और मेरे बेटे के दोस्त हो, मेरे अनुसार लिखा-पड़ी के सारे काम सिखलो, कोई भी अधिकारी तुम्हारा हाथ भी नही पकड़ पायेगा। तुम्हारी कलम बहुत तीखा जवाब देने में भी सक्षम होगी।”
बस ! सारा कार्यालय का काम करना प्रारम्भ कर दिया। उसी वजह से आज ३१ जुलाई को परिणाम मिले।
पढ़ाई के साथ,महापुरुषों की जयन्तियां मनाना, खेलों में अब क्रिकेट भी शुरू हो गया। छात्रों द्वारा की गई नारेबाजी, पत्थर वार के बाद। चौधरी सर ने ३००/-₹दिए। १०/-₹ दो लोगों का मोटर किराया, बिल दुकानदार से सिर्फ ३००/-₹ का लिया। पेमेंट २९० देकर दुकानदार ने सही बिल लेने पर ईमानदारी देखकर एक कैप भेंट में दी यह कहते हुए की लोग ज्यादा राशि का बिल ले जाते है।। केप भी कप्तान को दे दी।
२०० पौधे वन विभाग के सूरजसिंह बोड़ाना से ले जाकर वृक्षारोपण किया। छात्रों को पौधे आवंटित कर प्रशस्ति पत्र देने का वादा किया।
शासन स्तर पर होने वाली स्पर्धाओं खो-खो, कबड्डी में अंधा बाटे रेवड़ी, अपने-अपने को देत” वाली कहावत चरितार्थ होती थी। हर बार स्थापित शिक्षक अपने-अपने छात्रों का चयन कर लेते थे। कोई खिलाड़ी खेल प्रदर्शन अच्छा करता तो उसका नाम लिख कर अगले दौर के मैच में उन्हें हटाकर अपने किसी अतिरिक्त छात्र को खिलाते थे। यह बेईमानी देख आक्रोश आना स्वाभाविक था। आदरणीय गावड़े जी के समक्ष हुई बैठक में कई भीरू किस्म के लोग पीठ पीछे बोलते थे, वे वहां चुप ! मैंने अपना विरोध दर्ज कराते हुए चयन में मेरिट बनाने की बात रखी ताकि अतिरिक्त में पहले को मौका मिले। मेरे विद्यालय के ११ में से ९ छात्रों का खो-खो में चयन हुआ अतिरिक्त २ में से एक का नाम लिखकर एक अन्य छात्र का नाम हटाकर मेरे गुरुजी ने अपने बेटे का नाम लिख दिया। मुझे बहुत दुख हुआ,क्योंकि एक तेजतर्रार अन्य धर्म के छात्र का नाम हटा दिया था।
मेरे २ विद्यार्थी खो-खो और कबड्डी में पहली बार जिले से बाहर सोनकच्छ सम्भाग स्तर पर खेलने गए। वहां भी खिलाड़ियों के साथ चोट हो गई। स्टॉप वाच में टाइमिंग कम कर दिया।
यहां ईमानदारी को पराजित होता देखकर बहुत दुःख हुआ।
२ साल के लिए बी.टी.आई.प्रशिक्षण हेतु इंदौर रवाना हो गए। नुक्कड़ नाटक, आकाशवाणी पर काव्यगोष्ठी संचालन किया। “अशिक्षा एक अभिशाप” नामक नाटक में ‘अछूत’ की भूमिका निभाई। तत्कालिक भाषण प्रतियोगिता में इंदौर-उज्जैन सम्भाग से चयनित होकर वर्तमान छत्तीसगढ़ के अम्बिकापुर में राज्य स्तरीय विज्ञान मेले में भाग लिया। हस्तलिखित विज्ञान पत्रिका का प्रकाशन किया, जिसका सम्भाग में चयन होकर राज्य स्तर पर सराहना हुई। शैक्षणिक समाचार बुलेटिन का प्रकाशन लेखक एवं वक्ता श्री जीवनसिंह ठाकुर देवास के नेतृत्व में किया।
कवि सम्मेलन के दौरान सागोर के एक बालकवि वीरेन्द्रसिंह नादान की क्रांतिकारी रचनाएं सुनकर उस का साक्षात्कार लिया, जिसे एक प्रसिद्ध समाचार पत्र नई दुनिया में स्थान और मुझे पारिश्रमिक मिला।
मूक अभिनय, कई नाटकों का मंचन करने के साथ, खेल, आदि में भाग लेता रहा। अज्ञानता में पूरे बीटीआई. स्टाफ व साथियों को अप्रैल फूल बनाया। उसका आज मलाल होता है क्योंकि हिन्दू धर्म का विक्रम संवत शुरू होता है।
प्रशिक्षण पश्चात घर वापसी, पुनःआटाहेड़ा में पदांकन। वहीं से फोटोग्राफी की भी शुरु आत। १९९० में ६५ छात्र दर्ज संख्या वाले शासकीय माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ देपालपुर में ४४ छात्र उपस्थिति के साथ दूसरी पारी अध्यापन प्रारम्भ। बारिश में छत का टपकना, फर्नीचर का न होना, टूटे- फूटे कमरों फ़टी टॉपट्टियों पर बैठाकर बच्चों को पढ़ाना मजबूरी लग रही थी। प्रधानपाठक राधेश्याम शर्माजी से अनुगृहीत/अनुग्रहित पर शर्त जितने के पश्चात उनका जाना और आर.पी.पटेल के बाद मदन काका पाठक का प्रभारी बनना मेरे लिए “सोने में सुहागा” जैसा लगने लगा। काकाजी से मैने कहा-‘काम कोई भी अच्छा करेगा पर नाम तो मुखिया का ही होगा”,इसलिए आप हमें सहयोग करें। काकाजी ने वही किया जो हम सभी साथी चाहते थे। बस फिर क्या था। दिनेश ककरेचा, श्रीमती किरण जैन,नाजिर अली सर,के साथ मिलकर फूटी चद्दरों में एमसी लगाई, फर्नीचर सुधरवाये,टाटपट्टी की व्यवस्था जुटाई। छात्र संख्या बढ़ती रही। पढ़ाई,खेलकूद,अन्य गतिविधियों के साथ कड़ा अनुशासन,समय प्रातः ६ बजे से १२ बजे तक। केवल मैं स्वयम ६ बजे उपस्थित होकर व्यायाम, खो-खो, चक्का, गोला फेंक, के साथ गायन भी। वर्ष के अंत मे वार्षिकोत्सव -२५ से ३० प्रतियोगिताएं, पुरस्कार वितरण, सहभोज में छात्र कलेक्शन करते जो राशि कम पड़ती हम शिक्षक साथी पूर्ति करते। तहसील में छाप हो गई २ नम्बर विद्यालय की। सभी जातियों और धर्मों के छात्र कई- काकवा, जलालपुरा, खड़ी बनेडिया, तामलपुर, भिडोता, खटवाड़ी, तकीपुरा, गिरोड़ा, बरोदा, जलोदियापंथ तक के छात्र विद्यालय में आने लगे। पड़ोसी विद्यालय से प्रतिस्पर्धा चलने लगी।
उनकी संख्या कम होने और हमारी बढ़ने लगी।
विकासखण्ड स्पर्धाओं में एकतरफा २ नम्बर का जलवा, अधिकतम पुरस्कार, गायन में १५ अगस्त, २६ जनवरी को पुरस्कार। खो-खो में लगातार ४ वर्षों तक चेम्पियन। संस्था में निःशुल्क कराटे क्लास में छात्रों को प्रशिक्षण। तहसील में २ नम्बर स्कूल १ नम्बर विद्यालय बन गया। अनेको पुरस्कार प्राप्त किये
उस वक्त प्रथम विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी,श्री प्रेमनारायण जी दीक्षित थे। उन्होंने विद्यालय का कार्य,पढ़ाई व व्यवस्था देखकर भूरी-भूरी प्रशंसा की। वो कहते थे – इस संस्था के ९७ छात्रों को रैली के रूप में अकेले रवाना कर दो तो ९७ से ९६ नही बल्कि 97 से एक सो हो सकते हैं। ऐसा अनुशासन है श्री वर्मा का। पुस्तकालय का उद्घाटन कन्याशाला की प्राचार्य अय्यर मेडम के साथ एडी.आई. कल्याण सिंह यादव ने किया।
प्रथम विकासखण्ड स्पर्धा के लिए मेरे एक वक्तव्य एवम उचित विरोध पर तत्कालीन संभागीय शिक्षा अधीक्षक श्री भीमसिंह रावल से दीक्षित जी ने खण्ड स्तरीय स्पर्धा की अनुमति लेकर देपालपुर में आयोजित की। श्री कृष्णवल्लभ शर्मा जी के साथ गौतमपुरा से स्काउट बेंड ने आकर मार्च पास्ट किया। बहुत अच्छा लगा, मैंने मन ही मन स्काउट बेंड देपालपुर में प्रारम्भ करने की ठान ली। उक्त प्रथम आयोजन में सबसे ज्यादा पुरस्कार २ नम्बर विद्यालय ने जीते। कार्यक्रम की रूपरेखा बनाने, समस्त व्यवस्था करने और संचालन का मुझे मौका मिला।
मैंने दीक्षित जी से स्काउट बेंड सामग्री क्रय करने की अनुमति इस शर्त के साथ ली कि १५ अगस्त को मार्चपास्ट करते हुए पूरे देपालपुर नगर से रैली लय व कदमताल के साथ निकालना होगी ?
१५ दिन विद्यालय समय के पूर्व व पश्चात लगातार प्रेक्टिस कर पहले मैंने स्वयम गौतमपुरा के छात्रों से बेंड के सभी वाद्य बजाना सीखे, फिर छात्रों को सीखा कर बेहतरीन अनुशासित रैली सही धुन व कदमताल के साथ निकाल दी।
बीईओ.दीक्षित जी ने पीठ थपथपाई। फिर रेड क्रॉस के साथ साथी शिक्षक डॉ. इंदरसिंह राठौर के संस्था में आजाने पर होम्योपैथिक क्लिनिक शुरू किया। जिसमे छात्रों को भी दवाइयों की पहचान करवाई गई होकर निःशुल्क दवाई देना भी प्रारम्भ किया। विद्यालय में फोटो डिस्प्ले बनवाया अलमारियां, दरियां, लाउडस्पीकर सेट भी क्रयकर विद्यालय की एक अलग ही पहचान स्थापित करदी।
इस्टीमेट साइड प्लान के साथ आवेदन देकर ३ बड़े,एक छोटे कक्ष की स्वीकृति करवाई। बनने के बाद अवसरवादियों ने विद्यालय के कमरे पर अन्य विद्यालय के पास कमरे होते हुए भी गलत तरीके से आवंटन करवा लिया
यहां कीर्ति तो बहुत मिली पर-“यश नही मिला”।

एक बार ७२ शिक्षकों का स्थानान्तर हुआ, मेरा भी नाम था। इस पर नगर के राजनीतिक पंडितों के साथ समाजसेवियों व पालकों ने विरोध किया व मेरे कार्यों की फेहरिस्त और अन्यों के समर्थकों के कारण से सूची निरस्त कर दी गई।
चूंकि मैं शुरू से ही जाति-पांति, धर्म भेद, ऊंच-नीच, दादा बहादर, गरीब, अमीर, रंक फकीर कुछ नही चलने देता। मेरे अनुसार नर और नारी दो जातियां,गोरा और काला दो वर्ण के अलावा कोई भेद नही मानता। वही मेरा ध्येय-जाति जानवरो की, पेड़-पौधों, वनस्पतियों, कीट-पतंगों की होती है। गाय, गधा, घोड़ा, बकरी, नीम, पीपल, बरगद, मउड़ी, चींटी, मकोड़ा, मछली, मेंढक, घेंगा, मच्छर, तितली सभी को देखकर बताया जा सकता है,लेकिन इंसानों में जाति भेद नही बताया जा सकता। इसलिए मुझे समस्त नगर वासियों का साथ और समर्थन मिला।
एक गरीब मुस्लिम छात्र जिसके कपड़ों पर ‘कारी’ लगी हुई थी, नज़रअली साबिरअली ने किसी गरीब छात्र को अपनी पुरानी पुस्तक भेंट करने का कहा। उसी से प्रेरणा लेकर प्रेरणा बुक बैंक की स्थापना कर १५०० किताबों का संग्रह कर लिया। छात्रों के साथ हम साथी शिक्षकों के सहयोग से मैंने १८५७ के क्षेत्र के प्रथम क्रांतिकारी शहीद भगीरथ सिलावट के नाम से ३५० ज्ञानवर्धक पुस्तकों का वाचनालय प्रारम्भ किया।

एक छात्र नईमुद्दीन सलामुद्दीन को प्रवेश देने में सद्मन से आनाकानी करते हुए कहा- “तुम्हे न तो ठीक से हिंदी आती है, न अंग्रेजी और न ही गणित,” तुम्हे ६ ठी में भर्ती कैसे कर लें। तब उसने कहा-सर आपकी कड़ाई, और पढ़ाई में मैं पूरी तरह फिट होकर बताऊंगा और मार भी नही खाउंगा।”
उस दिव्यांग छात्र के आत्म विश्वास ने मेरे अंतर्मन को जोश से भर दिया। वह सभी कक्षाओं में प्रथम आकर ८ वीं में विद्यालय का अध्यक्ष भी बना और आज वह अमेरिका के टेक्सास में वहां की प्रसिद्ध जेपी मुरुगन बैंक में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।

मेहनत रंग लाने लगी २ नम्बर विद्यालय में बच्चे भर्ती नही होते थे आज उसी विद्यालय के छात्र विदेशों में है। सऊदी में सैफुल्ला फारूकी,अन्य जगह शरीफ शाह के साथ कई बड़े शहरों में नौकरी कर रहे है। सेना में बड़े ओहदे पर सचिन राधेश्याम टेलर कार्यरत है।
२ विद्यार्थियों ने पीएचडी कर डॉक्टरेट की उपाधि पा ली है। वही डॉक्टर, तहसील दार, अनेकों इंजीनियर, पुलिस विभाग, सी.ए., एम.बीए.,अनेकों शिक्षक,कई राजनीतिज्ञ के रूप में मुझे सम्मान दिलवा रहे है।
पुनः एक बला युक्तियुक्त करण की आई और उस विद्यालय से बिदागी लेकर वर्तमान संस्था में पदार्पण किया।
मेरा आटाहेड़ा विद्यालय छूटने के बाद वह बर्बाद हो गया। बगीचा नष्ट हो गया, कई पौधे बड़े पेड़ का रूप ले चुके है। जमीन मालिक ने वहां के कर्णधारों की मनमानी के कारण विद्यालय नही बनाने दिया। विद्यालय भवन अन्य स्थान पर बनाया गया।वह जगह वीरानी के आंसू बहा रही है।
मेरा २ नम्बर छूटा, २ साल बाद वह भी बन्द हो कर छात्र संख्या ज्यादा होने के बावजूद जिस संस्था से प्रतिस्पर्धा चलती थी उसी में छात्रों को मर्ज कर सारी मेहनत १ नम्बर को हस्तांतरित कर दी गई। स्काउट बेंड समाप्त हो गया। सारे पुरस्कार सड़ गए। पूरा सामान युक्तियुक्तकरण की भेंट चढ़ गया और विद्या लय का स्थानान्तर ख़िरेली गांव में कर दिया बहुत दुख हुआ।
मैं फिर भी चुप नही बैठा व वर्तमान प्राथमिक विद्या.क्रमांक १ देपालपुर को हर रंग में रंगने के लिए भिड़ गया…
झूला, चकरी, फिसलपट्टी, बेहतरीन औषधीय पौधों से युक्त बगीचे का निर्माण किया। जैविक खाद का निर्माण विगत वर्ष से प्रारम्भ किया गया था। इस वर्ष उसका उपयोग फलदार पौधों के रोपण के साथ, सब्जी उगाने व नर्सरी लगा कर छात्रों को भी प्रशिक्षण दिये जाने मे कर रहे है। खेल-खेल में खेल सामग्री के साथ नवाचार के तहत “विनोद चक्र” के माध्यम से भी छात्रों की पढ़ाई करवाई जा रही है।
छात्रों को शैक्षणिक सामग्री के साथ बेग,गर्म स्वेटरों की भी व्यवस्था जन सहयोग से करवाई।
अब तक लगभग २० अवार्ड प्राप्त किये जा चुके है। बस ! अब तमन्ना है दो अवार्डों की,शायद …….ही…………….
मुझे तो अभीभी यही लगता है कीर्ति तो बहुत हुई
पर क्या यश मिलेगा ??? कि सिफारिशों की भेंट चढ़ेगा ????

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लेखक परिचय :- 
नाम – विनोद वर्मा “आज़ाद” सहायक शिक्षक (शासकीय)
एम.फिल.,एम.ए. (हिंदी साहित्य), एल.एल.बी., बी.टी., वैद्य विशारद पीएचडी. अगस्त २०१९ तक हो जाएगी।
निवास – इंदौर जिला मध्यप्रदेश
स्काउट – जिला स्काउटर प्रतिनिधि, ब्लॉक सचिव व नोडल अधिकारी
अध्यक्ष – शिक्षक परिवार, मालव लोकसाहित्य सांस्कृतिक मंच म.प्र.
अन्य व्यवसाय – फोटो & वीडियोग्राफी
गतिविधियां – साहित्य, सांस्कृतिक, सामाजिक क्रीड़ा, धार्मिक एवम समस्त गतिविधियों के साथ लेखन-कहानी, फ़िल्म समीक्षा, कार्यक्रम आयोजन पर सारगर्भित लेखन, मालवी बोली पर लेखन गीत, कविता मुक्तक आदि।
अवार्ड – CCRT प्रशिक्षित, हैदराबाद (आ.प्र.)
१ – अम्बेडकर अवार्ड, साहित्य लेखन तालकटोरा स्टेडियम दिल्ली
२ – रजक मशाल पत्रिका, परिषद, भोपाल
३ – राज्य शिक्षा केन्द्र, श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
४ – पत्रिका समाचार पत्र उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान (एक्सीलेंस अवार्ड)
५ – जिला पंचायत द्वारा श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
६ – जिला कलेक्टर द्वारा सम्मान
७ – जिला शिक्षण एवम प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) द्वारा सम्मान
८ – भारत स्काउट गाइड संघ जिला एवं संभागीय अवार्ड
९ – जनपद शिक्षा केन्द्र द्वारा सम्मानित
१० – लायंस क्लब द्वारा सम्मानित
११ – नगरपरिषद द्वारा सम्मान
१२ – विवेक विद्यापीठ द्वारा सम्मान
१३ – दैनिक विनय उजाला राज्य स्तरीय सम्मान
१४ – राज्य कर्मचारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१५ – म.प्र.तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी अधिकारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१६ – प्रशासन द्वारा १५ अगस्त को सम्मान 
१७.- मालव रत्न अवार्ड २०१९ से सम्मानित।
१८ – श्री गौरीशंकर रामायण मंडल द्वारा सम्मान।
१९ – “आदर्श शिक्षा रत्न” अवार्ड संस्कार शाला मथुरा उ.प्र.।
२० – दो अनाथ बेटियों को गोद लेकर १२वीं तक कि पढ़ाई के खर्च का जिम्मा लिया।


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