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सुख के नगमे ही गाए हैं

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच

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जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस,
इसीलिए सुख के नगमे ही गाए हैं।

वक्त चाल से अपनी ही चलता हरपल,
हमको तो बस अपने फर्ज निभाने थे।
जैसा आया मौसम भोग लिया हमने,
आलस ने पर ढूंढे कई बहाने थे।।
अपने मन का होतो सुख ना हो तो दुख,
मन पर अंकुश ने ही सुख बरसाए हैं।
जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस,
इसीलिए सुख के नगमे ही गए हैं।।

अलविदा बीस, इक्कीस विदाई देता है,
नहीं शिकायत तुमसे तुम इतिहास बने।
याद करेंगे लोग तुम्हें ना भूलेंगे,
वे सारे तुम जिनके खातिर खास बने।।
कुछ व्यक्ति भगवान बने जीवन देकर,
कुछ ने सेवा कर जीवन उजलाए हैं।
जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस,
इसीलिए सुख के नगमे ही गए हैं।।

घर में रहकर जीने का आनंद लिया,
छोड़ी भागम भाग तो राहत पाई है।
काम “अनंत” दूसरों के आए तब ही,
दूर गई दु:ख दर्दो की परछाई है।।
जनहित से जो भटक गए रहबर अपने,
सदमें, ऐसो ने ही बहुत उठाएं हैं।
जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस,
इसलिए सुख के नगमे ही गाए हैं।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
निवासी : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)


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