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अपने घर सा ना ही कोई द्वार देखा है 

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रचयिता : वंदना शर्मा

  अपने घर सा ना ही कोई द्वार देखा है
  घूम-घूम  कर मैने  संसार देखा है |
पर अपने घर सा ना ही कोैई द्वार देखा है ||
पूरब से लेकर पश्चिम तक |
उत्तर से लेकर दक्षिण तक|
बस एक सा ही हाल हर ओर देखा है ||………….||1||
घर के अँगने  से सड़कों तक |
धरती से लेकर अम्बर तक |
रोते ही सबको मैने हर हाल देखा है ||……..||2||
कुटिया से लेकर बँगले तक |
नीडो़ से लेकर महलों तक |
बस सबको ही जाने क्यों परेशान देखा है ||……||3||
स्कूल से लेकर संसद तक |
चपरासी  से  मंत्रीजी तक |
सबको अपनी ही जेबों  की चिंता करते देखा है ||…………..||4|
सारे जग में घूम -घूम कर के मैने ये जाना है |
अपने अनुभव के दम पर मैने तो ये पहिचाना है |
बस माँ के आँचल में ही सच्चा प्यार देखा है ||……………||5||

लेखीका परिचय :- 
नाम – वंदना शर्मा आत्मजा श्री देवकी नंदन शर्मा
जन्म – ३ नवंबर, १९९१
निवासी – अकलेरा, जिला- झालावाड़ (राजस्थान)
शिक्षा – स्नातकोत्तर
लेखन कार्य – जब पहली बार देवास से आए शशीकांत यादव सर को सुना, बस तभी से ईशवर की ये अनुपम दौलत मुझे मिली |
रूची – डेकोरेशन क्राफ्ट बनाना ,लेखन
लेखन – व्यंग्य, कविता, एकांकी

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