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रोशनी का अवतरण हो

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल मध्य प्रदेश
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काव्य सागर में निरंतर, लेखनी का संतरण हो।
लोक के कल्याण के हर, कर्म का दिल से वरण हो।।१

पल्लवित हो हर हृदय में, नेकियों के बाग फिर से।
शृंग ऊँचें जो बदी के, रात दिन इनका क्षरण हो।।२

काल कवलित हो नहीं फिर, झुग्गियों के स्वप्न देखें।
नित बहे सौहार्द सरिता, आस का वातावरण हो।।३

मेघ दुख के दूर नभ से, मेह सुख की हो धरा पर।
कैद से हो मुक्त दिनकर, रोशनी का अवतरण हो।।४

छल कपट के नव मुखौटे, जो मनुज के मुख जड़े हैं।
मन दिगम्बर संत सा हो, शुद्ध जल सा आचरण हो।।५

इस धरा सा धैर्य रखकर, हम चलें उपकार के पथ।
शीश उन्नत हो गगन में, किन्तु धरती पर चरण हो।।६

छंद की रसधार में नित, आचमन करता रहे मन।
लक्ष्य ‘जीवन’ का यही बस, दंभ का उर से मरण हो।।७

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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