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व्यवस्था को फाँसी दो

माधवी मिश्रा (वली)
लखनऊ

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अरे व्यवस्था को फाँसी दो
नौनिहाल जो सींच रहे
जिस पूंजी के लिये खोल
माँ की तस्वीरें खीच रहे

दौड़ रहे प्रभुता के पीछे
अपनी, मर्यादा को भूल
संस्कार आर्यों की धोकर
चाट रहे पश्चिम की धूल

उपभोक्ता संस्कृति नही थी
अपने भारत की सन्तान
इसको नंगा करके तुमने
मिटा दिये अपनी पहचान

आज अगर कानून बनाकर
मृत्यु दण्ड तुम देते हो
क्यों लगता है तुमको ऐसा
समाधान कर लेते हो?

नारी का सम्मान खरीदे
भेज रहे आगे आगे
मन की आखों से सोये
दिखते बस जागे जागे

अपनी सब पहचान छुपाते
प्रतिकृति बन आधुनिक हैं
पॉप सांग पर थिरक रहे हो
कहते हो हम युनिक हैं।

पूर्वज से मुख मोड़ चुके हो
जग से नाता तोड़ चुके हो
भाग दौड़ पैसो के खातिर
बचपन सूना छोड़ चुके हो

बालशुलभ मन को समझाए
नैतिकता अब कौंन बताये
आधी और अधूरी शिक्षा
ये पागलपन और बढ़ाये।

केवल बस सरकार बनाये
नये खयालों की दीवार
कहाँ-कहाँ ये हो सकता
सोचो समझो करो विचार

परिचय :- माधवी मिश्रा (वली)
जन्म : ०२ मार्च
पिता : चन्द्रशेखर मिश्रा
पति : संजीव वली
निवासी : लखनऊ
शिक्षा : एम.ए, बीएड, एलएल बी, पीजी डी एलएल, पीजीडीएच आर, एमबीए,।
प्रकाशन : तीन पुस्तकें प्रकाशित अनेक साझा संकलन, काव्य, लेख, कहानी विधा पत्र पत्रिकाओं रेडियो दूरदर्शन पर-प्रकाशन, प्रसारण,अनेक सामाजिक संस्थाओं व संगठनो मे सह भागिता। समाज सेवा
सम्प्रति : वर्तमान मे अंग्रेजी माडल स्कूल की प्रधान शिक्षिका।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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