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मुट्ठी भर धूप

माधवी मिश्रा (वली)
लखनऊ
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किसने कहा तुमसे
अपराध मेरे रगों मे बहता है
मेरे खून का रंग सफेद है
तुम्हारे आन्तरिक दुर्बलता को
महिमा मंडित करती हैं
ये संकीर्ण भावनाएं
अपने स्वयं के
कल्मशो से प्रेरित
तुम चच्छुहीन चिंतन
करने के अभ्यस्त हो
अत:सोच भी नही सकते की
मेरे भी खून का रंग लाल है
मेरी भी अस्थियां तुम जैसी हैं
फिर भी मैं तुम्हारी
संवेदनाओं का
अभिनंदन करता हूँ ,
जिसमे मेरे लिये
अपावन ही सही स्थान तो है
हमारे बीच विभाजक हैं
अन्शुमाली की दस्यू किरणें
जो तुम्हारे जन्म के साथ
संचित हो जाती हैं
तुम्हारे खातों मे
किन्तु मेरे जन्म पर
गुमनाम पिता की याद मे
आँसू बहाती माँ,
तड़प उठती है और
मुझे पहचान नही देती
गौरव से शीष उठाने का
अधिकार नही देती
धरती मुझे बिछौना देती है
परन्तु संदेहों के शहर मे
रोटी नही देती।
दुनियाँ के कोलाहल मे
‘मुट्ठी भर धूप’
मुझे तुम्हारे जेब से
निकालने होते हैं
उसी के साथ….
कायर पिता के
बाजारू एहसानों के
बोझ तले दम तोड़ती माँ
तुम्हारे जूतों के मार से
उधड़े हुए पर्त
आतिशी नजारों मे
सिक्कों पर थिरकते पाँव
वक्ष से खींचे गये
आवरण के चिंदे
सब मेरे खातों मे
संचित हो जाते हैं
तब मैं तुम्हारे
सफेद खून को पीकर
सफेद हो जाता हूँ और फिर
तुम्हारे सद्निर्णयों का कर्ज
तुम्ही को चुकाता हूँ।

परिचय :- माधवी मिश्रा (वली)
जन्म : ०२ मार्च
पिता : चन्द्रशेखर मिश्रा
पति : संजीव वली
निवासी : लखनऊ
शिक्षा : एम.ए, बीएड, एलएल बी, पीजी डी एलएल, पीजीडीएच आर, एमबीए,।
प्रकाशन : तीन पुस्तकें प्रकाशित अनेक साझा संकलन, काव्य, लेख, कहानी विधा पत्र पत्रिकाओं रेडियो दूरदर्शन पर-प्रकाशन, प्रसारण,अनेक सामाजिक संस्थाओं व संगठनो मे सह भागिता। समाज सेवा
सम्प्रति : वर्तमान मे अंग्रेजी माडल स्कूल की प्रधान शिक्षिका।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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