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हरिभक्ति

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, म.प्र.
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अँधियार चारों ओर बिखरा, सूझता कुछ भी नहीं।
उजियार तरसा राह को अब, बूझता कुछ भी नहीं।।
उत्थान लगता है पतन सा, काल कैसा आ गया।
जीवन लगे अब बोझ हे प्रभु, यह अमंगल खा गया।।

हे नाथ, दीनानाथ भगवन, पार अब कर दीजिए।
जीवन बने सुंदर, मधुरतम, शान से नव कीजिए ।।
भटकी बहुत ये ज़िन्दगी तो, नेह से वंचित रहा।
प्रभुआप बिन मैं था अभागा, रोज़ कुछ तो कुछ सहा।।

प्रभुनाम की माया अनोखी, शान लगती है भली
सियराम की गाथा सुपावन, भा रही मंदिर-गली
जीवन बने अभिराम सबका, आज हम सब खुश रहें।
उत्साह से पूजन-भजनकर, भाव भरकर सब सहें।

हरिगान में मंगल भरा है, बात यह सच जानिए।
गुरुदेव ने हमसे कहा जो, आचरण में ठानिए।।
आलोक जीवन में मिलेगा, सत्य को जो थाम लो।
परमात्मा सबसे प्रबल है, आज उसका नाम लो।।

भगवान का वंदन करूँ मैं, है यही बस कामना।
प्रभुलीन हो सुखमय रहूँ मैं, है यही बस भावना।।
हे राम मेरे नाथ बनकर, मन सुवासित कीजिए।
मैं आपका सुमिरन करूँ नित, वर मुझे यह दीजिए।।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, म.प्र.
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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