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गुरु वंदना

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

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गुरु तो ईश्वर का
साकार रूप होता है
अंधाररुपी जीवन में
प्रकाश पुंज होता है!
गुरु की वाणी में रहती छिपी
प्रखर ज्ञान,
प्रज्ञा ज्ञान की चिंगारी!
गुरु की कृपा मात्र से
यह नश्वर जीवन
अमर शाश्वत बन जाता!
इस अलौकिक जीवन की यात्रा-
अति-सरल सुगम बन जाता!
गुरु अंदर की-दिव्यता को-
जगा कर इस जीवन पथ को
आलोकित कर जाता!
निज पशुता को भगाकर
दिव्य चेतना लाता
मनुज मात्र के लिए
उज्जवल प्रकाश पुंज फैलाता!
सदियों से है गुरु कृपा की
अनेकों दिव्य कहानी!
महामूर्ख कालीदास सदृश
एक दिन ‘महाकवि’ बन जाता!
महान योद्धा अशोक सम्राट
बौद्ध भिक्षुक बन जाता!
‘आर्यभट्ट’ ब्रह्मांड के ज्ञाता
कोई ‘कणाद’ सदृश्य
अनु ज्ञाता बन जाता!
कोई चाणक्य कृपा को पाकर
महान सम्राट बन जाता!
मैं मूरख भी निश-दिन
गुरु वंदना गाता!

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परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला – पूर्वी चंपारण (बिहार)
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान


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