Thursday, November 7राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

गुरू कृपा

डॉ. सर्वेश व्यास
इंदौर (मध्य प्रदेश)

**********************

सब मंचन्ह ते मंचू एक, सुंदर बिसद विशाल।
मुनि समेत दोउ बंधु तँह बैठारे महिपाल।। श्रीरामचरितमानस

      सब मंचों से एक मंच अधिक सुंदर, उज्जवल और विशाल था। स्वयं राजा ने मुनि सहित दोनों भाइयों को उस पर बैठाया। प्रसंग है कि श्री राम लक्ष्मण अपने गुरु विश्वामित्र जी के साथ सीता स्वयंवर देखने जनकपुर पधारें ।यज्ञशाला में दूर-दूर के देशों के बड़े प्रतापी एवं तेजस्वी राजा पधारे थे। राजा जनक जी ने अपने सेवकों को बुलाकर आदेश दिया कि तुम लोग सब राजाओं को यथा योग्य स्थान पर बिठाओंं और सेवकों ने जाकर सभी राजाओं को यथा योग्य स्थान पर बिठाया। वही जब अपने गुरू श्री विश्वामित्र जी के साथ दो नवयुवक राजकुमार राम और लक्ष्मण पधारें तो उठकर राजा जनक स्वयं गए एवं उन्हें सबसे सुंदर, उज्जवल और विशाल मंच पर उत्तम आसन पर बैठाया, जबकि उस सभा में कई प्रतापी शूरवीर दिग्विजय राजा मौजूद थे लेकिन उन्हें वह स्थान नहीं मिला जो नवयुवक राम और लक्ष्मण को मिला। इसमें राम-लक्ष्मण की कोई विशेषता नहीं थी कारण जनक जी तो उन्हे पहचानते भी नही थे, विश्वामित्र जी से परिचय पूछा था, फिर विशेषता थी तो उनकी गुरू भक्ति की। वे अपने गुरु के सानिध्य में थे, उनकी आज्ञा में थे, उनके कृपा पात्र थे। गुरु की कृपा से ही उन्हें गुरु के समान आसन प्राप्त हुआ, उनके स्थान समान स्थान प्राप्त हुआ, यह केवल गुरु की कृपा से ही सम्भव है। कबीर दास जी ने बोला था कि “गुरु पारस को अंतरों जानत है सब संत। वह लोहा कंचन करें, ये करि लये महन्त।।” गुरु और पारस पत्थर में अंतर है, पारस-पत्थर सब जानते हैं कि लोहे को सोना बनाता है लेकिन गुरु, शिष्य को अपने समान ही बना देता है। अर्थात लोहे को पारस छूता है तो लोहा सोना बन जाता है पारस नहीं, लेकिन गुरु, शिष्य को कृपा स्पर्श देता है तो शिष्य उसके समान हो जाता है। भारतीय संस्कृति में ऐसे कई उदाहरण हैं। जैसे श्री रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद। हमारे यहां जो गुरु-शिष्य की परंपरा है उसे जीवित रखना, उसे जीवंत रखना हमारी जिम्मेदारी है, हमारा दायित्व है। कहना गलत ना होगा कि जब से ज्ञान पुस्तकों में आया है, तब से व्यक्ति ने शब्दों का जाल तो बहुत तैयार कर लिया है लेकिन वह आचरण शून्य हो गया है। आज आवश्यकता है कि उस ज्ञान को, उस विज्ञान को पुनः स्थापित करने हेतु गुरु मुख से प्रदान ज्ञान की महत्ता बढाई जाऐ, ताकि वह आचरण में उतरे। जिससे समाज का नैतिक स्तर ऊंचा हो। आज शिक्षक दिवस के पुण्य अवसर पर प्रार्थना स्वरूप गुरुजनों से किसी अन्य कवि की पंक्तियां लेकर प्रार्थना की जा रही है कि “ऐसा सत्य सिखाना जग को अनाचार जग से मिट जाए। मिटे स्वर्ग की असत्य कल्पना, शाश्वत सत्य धरती पर आए। तुम भू के भगवान, तुम्हारे चरणों से ईश्वर मिलते हैं। तुम अंतर की बगिया के माली तुमसे फुल जीवन के खिलते हैं मैं भूलू पर तुम मेरी भूलो पर नाराज ना होना तुम शिक्षक विद्वान तुम्हारी प्रतिभा से मिट्टी भी है सोना। मिट्टी को सोना बनाने वाले शिक्षक- गुरु जन के चरणों में शत-शत नमन।

परिचय :-  डॉ. सर्वेश व्यास
जन्म : ३० दिसंबर १९८०
शिक्षा : एम. कॉम. एम.फिल. पीएच.डी.
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
लेखन विधा : व्यंग्य, संस्मरण, कविता, समसामयिक लेखन
व्यवसाय : सहायक प्राध्यापक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *