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गुबार और कारवां

बुढ़ापा

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रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” 

गुबार देखता रह गया जमाना कारवां को दूर है जाना ,
उनको गुजरे नहीं हुए दो पल देखते ही देखते हो गए ओझल l

गुबार देखता रह गया जमाना कारवां को दूर है जाना ,
नहीं जाता उनके साथ जमाना क्यों?
क्योंकि उन्हें है विश्वास
एक दिन फिर लौट कर आएगा कारवा
देखेगा फिर जमाना गुबार II

लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल “दीप”
पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल
माता :- श्रीमती कमला पोरवाल
निवासी :- जावरा म.प्र.
जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा
शिक्षा :- एम कॉम
व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड

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