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मन की हरीतिमा

सीमा तिवारी
इन्दौर (मध्य प्रदेश)
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नीरू मेरे पास ये रिश्तेदारी निभाने का बिल्कुल वक्त नहीं है। तुम तुम्हारे हिसाब से देख लो। ये कहते हुए हेमंत कम्पनी जाने के लिए निकल गया। नीरू अपने घर के लॉन में आकर कुर्सी पर बैठ गई। उसकी स्मृति में अतीत की पुरानी यादें घूमने लगी।
रीता दी कितने हँसमुख और अच्छे स्वभाव की हैं। मुझे तो कभी लगा ही नहीं कि वो मेरी ननद है। हमेशा बड़ी बहन की तरह ही स्नेह दिया। जीजाजी के बीमार होने पर आज रीता दीदी ने फोन पर थोड़े से पैसे और थोड़ी सी सहायता माँगी है। हेमंत ने काम की व्यस्तता के कारण जाने से मना कर दिया।
नीरू की आँखें नम हो चली थी। उसने संयत होकर लॉन के दूसरी तरफ देखा तो माली दादा पौधों में पानी और खाद दे रहे थे। पौधों से बातें करना तो उनकी पुरानी आदत थी ही।
लहलहाती हरियाली देखकर नीरू के होंठों पर एक स्निग्ध मुस्कान तैर गई। उसने शाम की गाड़ी से रीता दीदी के घर जाने का फैसला किया और हेमंत के लिए पर्याप्त व्यवस्था और अपने सामान की पैकिंग करने में लग गई।
सच ही तो है अगर जीवन में रिश्तों के पौधें हरे-भरे बनाएँ रखने हैं तो उन्हें वक्त का पानी संवाद की धूप और अपनेपन की खाद देते रहना चाहिए।

परिचय :-सीमा तिवारी
शिक्षा : एम एस सी (गणित) और बी एड
निवास : इन्दौर (मध्यप्रदेश)
कृति : संवेदनाएँ (कहानी संग्रह)
प्रमाणीकरण : मेरी यह रचना स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित है।


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