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विराट कैनवास की छत्रछाया

गोविंद पाल
भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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“गर तेरी आवाज़ पे कोई न आये
तो फिर चल अकेला,
चल अकेला, चल अकेला रे..”
गुरुदेव आपको पता था
की चलते जाओगे
तो कारवां बनता जायेगा
अगर आज होते तो नहीं ले पाते
अकेले चलने का प्रण
क्योंकि कारवां के पीछे भी
रचा जाता षडयंत्र
तब आप अलग-थलग पड़ जाते
और अधूरा रह जाता
आपका शांति निकेतन
की परिकल्पना
हे विश्वकवि-आज के इस
इंसानी रोबोटिक भीड़ में
कहाँ खोज पाते मिली के
उस काबुलीवाले को
या डाकघर के “अमल” के
उस दही बेचने वाले को
और उनके निश्छल प्रेम,
गुरुदेव कहाँ है
वह बंकिमचन्द्र चन्द्र
जिन्होंने आगामी
प्रजन्म को बचाने
अपने गले की माला उतार कर
आपके गले में डाली थी
और आप भी उन
परम्पराओं को निभाते हुए
आह्वान किये थे उस
“विद्रोही धूमकेतु”
(काजी नजरुल इस्लाम) को,
गुरुदेव आज के संवेदनहीन
सामाजिक टीले
और राख होते
देश भक्ति के स्तूप पर
कैसे लौटाते नाईट उपाधि?
आज रामदीन और
कमरूद्दीन की आँखों में
लहलहाती हुई फसलों की
चमक नहीं होती है गुरुदेव
उनकी आँखों में नचाती है
कर्ज की खौफनाक मौत,
उन्मुक्त कंठ से आज
कहाँ गा पा रहा है
आपका वह केवट
उनका भाटियली सुर
वह तो पेट परिवार और
महाजन के कर्ज तले
न जाने कहाँ खो गए,
हम जानते हैं गुरुदेव
आपका खुदा आपका भगवान
तथाकथित उन धर्मों का
खुदा या भगवान नहीं
जो कठमुल्लों और मठाधीशो के
हुक्मरानो पर चलता हो,
आपका भगवान तो सम्पूर्ण
मानवतावादी चेतना का दर्शन था,
तभी तो आप निःसंकोच कह सके
“सबसे ऊपर मानव सत्य
उससे ऊपर कोई नहीं”
सिंधु को बिंदु में बाँधने वाले
हे गुरूदेव
छीनते हुए बचपन के इस युग में
पता नहीं कहाँ खो गये
तितलियों और पतंगो के पीछे
भागने वाले आपके वह बच्चे,
और उनका चंचल – चपल बचपन,
सामन्तवादी व्यवस्थाओं के
खिलाफ आपका संघर्ष
आपकी प्रगतिशील सोच
आपके मन की व्यथा,
यंत्रणा को महसूस किये बगैर
रच दी हमनें साजिश,
और बाँध दिये आपको सिर्फ
प्रकृति और आध्यात्मिक के दायरे में,
स्त्री के प्रति आशक्ति या
आदर्शवादी प्रेम था या नहीं
ये तो हम नहीं जानते पर
आपकी प्रेम कविता में
डूब कर
महसूस किया जा सकता है
प्रेम की गहरी अनुभूति को ,
हे भारतीय सांस्कृतिक
नवजागरण के शिखर पुरुष
हम नहीं निभा पाये
आपना फर्ज
नहीं उतार सके हम
आपका कर्ज
आपके समय से हम
इतने बौने हो गये हैं की
अपनी परिभाषा तक खो बैठे,
हे-विश्व कवि-सात्रंतयोत्तर
के बाद के इस भारत को
नैतिक अधोपतन से मुक्ति दिलाने
हमें बार- बार आना ही पड़ेगा
आपके विराट
कैनवास की छत्रछाया में।

.

परिचय :गोविंद पाल
शिक्षा : स्नातक एवं शांति निकेतन विश्व भारती से डिप्लोमा इन रिसाइटेशन।
लेखन : १९७९ से
जन्म तिथि : २८ अक्तूबर १९६३
पिता : स्व. नगेन्द्र नाथ पाल,
माता : स्व. चिनू बाला पाल
पत्नी : श्रीमति दीपा पाल
पुत्र : प्लावनजीत पाल
निवासी : भिलाई नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
प्रकाशन :
परमात्मा के खिलाफ (कविता संग्रह – २००२) शब्द भारती प्रकाशन इलाहाबाद उ. प्र.
मुन्ना बोला (बाल कविता संग्रह – २००३) वैभव प्रकाशन रायपुर, छत्तीसगढ़
हांटूर नीचेर मानूष (बांगला कविता संग्रह – २००४) मिहिर प्रकाशन दुर्ग, छत्तीसगढ़
चिंटू का वादा बाल कहानी संग्रह – २००५) लोकहित प्रकाशन – दिल्ली
टकला बाबा (बाल नाटक संग्रह – २००५) लोकवाणी प्रकाशन – दिल्ली
बोनसाई (कविता संग्रह – २००९) देश भारती प्रकाशन – दिल्ली
इसके अलावा तीन पुस्तकें शीघ्र प्रकाशनाधीन
प्रसारण : आकाश वाणी तथा दर्जनों टी व्ही चैनलों से बाल कविता, बाल नाटक एवं हास्य व्यंग्य व अन्य कविताओं का प्रसारण
पुरस्कार व सम्मान :
१. अ. भा. अंबिका प्रसाद दिव्य रजत अलंकरण से अलंकृत – २००६
(बाल कहानी संग्रह चिंटू का वादा के लिए)
२. शब्द रत्न मानद उपाधि से सम्मानित किया गया- २०१२
अखिल भारतीय काव्य संग्रह प्रतियोगिता में पुरे हिंदुस्तान से आये हुए २०० काव्य संग्रह में से सबसे उत्कृष्ट कविता संग्रह के रूप में बोनसाई को प्रथम पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया एवं “शब्द रत्न” मानद उपाधि से नवाजा गया।
३. २००८ – रामसेवक सक्सेना स्मृति बाल साहित्य सम्मान बाल साहित्य शोध केन्द्र भोपाल में डा. राष्ट्र बंधु के कर कमलो द्वारा
४. २००९ – बाल वाटिका सृजन सम्मान, भीलवाड़ा राजस्थान
५. २०१० – बाल साहित्य शिखर सम्मान खटिमा उधमसिंह नगर, उत्तराखंड द्वारा,
६. तीन अप्रैल से बारह अप्रैल २०१८ तक बांग्लादेश की साहित्यिक यात्रा में बांग्लादेश के कई शहरों में बांग्लादेश के सचिवालय में कविता पाठ एवं की पुरस्कार विजेता सम्मान प्राप्त।
७. हाल ही में म.प्र. साहित्य अकादमी के सुप्रसिद्ध कवि, लेखक व समीक्षक एवं म.प्र. साहित्य अकादमी के संयोजक श्री घनश्याम मैथिल “अमृत” द्वारा लिखित समीक्षात्मक पुस्तक रचना के साथ साथ में हिंदुस्तान के सबसे उत्कृष्ट २८ पुस्तकों की समीक्षा में गोविंद पाल की काव्य संग्रह “बोनसाई” को भी शामिल किया गया है।


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