Sunday, December 22राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

चने का झाड़

अर्चना अनुपम
जबलपुर मध्यप्रदेश

********************

समर्पित-अनायास ही तनिक-अधिक उन्नति पाकर मनः स्थिति में उपजित परोक्ष निर्मूल अभिमान को।

 

मैं चने का झाड़ हूँ नहीं कोई ताड़ हूँ।
बावजूद इसके मेरी घनघोर छाया
क्योंकि फैली दुनिया में बेपनाह माया
हर किसी को सुलभ कराता भरपूर
‘लाड़ हूँ’
मैं ‘चने का झाड़’ हूँ।

कुछ तो उपलब्धि पाता है,
यूँ ही नहीं हर कोई मुझमें बैठ अन्य को
धता बताता है ।
“चढ़ गए चने के झाड़ में”
ये तंज मुस्कुराकर झेल जाता है।
मिली ज़रा सी शोहरत इज्ज़त दौलत
तब उसका ना कोई अपना ना ख़ूनी ना
जिगरी रिश्ता काम आता है।
सिर्फ़ एक ‘चने का झाड़’ ही तो दुलरता है।

ऐंसा मैं नहीं मानता पर दुनियां में ही तो कहा जाता है।
ज़नाब, तब तो कंधे पर बैठाकर घुमाने वाले,
मां-बाप भी छूट जाते हैं। (व्यंग्य का तड़का)
मेरी मजबूत टहनियों में लटककर ही तो
आदमी और मजबूती पाते हैं।
उत्तरोत्तर उन्नति की मिसाल हूँ,
बिन कुछ किये-धरे मालामाल हूँ।

जो एक बार आया मेरी शरण में,
फिर मानो कि, मोक्ष ही पा जाता है,
इतराता सभी को लुभाता है।
आपने सुना ही होगा मेरे बुलंद
हौसलों के बारे में?
जी! आप सभी ने तो, सुना ही होगा मेरे
बुलंद हौसलों के बारे में?
इंसान तो छोड़ो जो समझते
नहीं भगवान को वो भी! जी हाँ वो भी!
मेरी छाँव में घुटने टेक आते हैं।
ये बात और है कुछ दिन पाने
के बाद पनाह मेरी मूल निवासी
‘किल्लियों द्वारा बख़ूबी चोंथे-नोचे जाते हैं।

बस एक कमी है मेरे भीतर,
जिसका मुझे बहुत बड़ा खेद है।
सीज़न के सीज़न उभरता हूँ,
और दो चार महीने में ही बिखरता हूँ।
ना जी! दरअसल ये खेद, मेरे अपने लिए नहीं,
मेरे! उन अपनों के लिए है,
जो मेरे बिखरते ही गिरते हैं धड़ाम,
बिगड़ जाते हैं उनके सारे बने बनाये काम।

फिर मेरे दुश्मन उनपर हँसते हैं,
और उन मतलब दुनियावाले
नामुरादों के व्यंग्य जाल में फँसते हैं।
पर मुझे क्या? फिर से अगले सीज़न आऊँगा
वो मानते होंगें मुझे अपना तो उन्हें
नहीं तो किसी और को अपनी अतिश:,
मजबूत टहनियों में पुनः चढ़ाऊँगा।

पर ‘चने के झाड़’ में चढ़ने वालों मेरे अपनों!
याद रखना,
दो चार महीने में ही फिर से बिखर जाऊँगा।
मुझे तो तब भी नहीं आता ख़ुद पर गुरूर।
बढ़ना और बिखरना तो,
दुनिया का है दस्तूर।
दोस्तों आप समझ तो गए ही होंगें काफ़ी समझदार हैं।
हमारा अस्तित्व सिर्फ है इतना हम,
‘चने के झाड़’ जितने भी भला कहाँ समझदार हैं?

अगर समझदार हो जाते तो घर आँगन,
आम, नीम, वट, निम्बू आदि लगाते पर,
गुमान में चूर हम उन्हें ही कटवाते हैं।
तभी तो छाया पाने सिर्फ
‘चने के झाड़’ की गरज भुनाते हैं।

.

परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम
साहित्यिक उपनाम – अर्चना अनुपम
जन्म – २१/१०/१९८७
मूल निवासी – जिला कटनी, मध्य प्रदेश
वर्तमान निवास – जबलपुर मध्यप्रदेश
पद – स.उ.नि.(अ),
पदस्थ – पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय जबलपुर जोन जबलपुर, मध्य प्रदेश
शिक्षा – समाजशास्त्र विषय से स्नात्कोत्तर
सम्मान – जे.एम.डी. पब्लिकेशन द्वारा काव्य स्मृति सम्मान, विश्व हिन्दी लेखिका मंच द्वारा नारी चेतना की आवाज, श्रेष्ठ कवियित्री सम्मान, लक्ष्मी बाई मेमोरियल अवार्ड, एक्सीलेंट लेडी अवार्ड, विश्व हिन्दी रचनाकार मंच द्वारा – अटल काव्य स्मृति सम्मान, शहीद रत्न सम्मान, मोमसप्रेस्सो हिन्दी लेखक सम्मान २०१९..
विधा – गद्य पद्य दोनों..
भाषा – संस्कृत, हिन्दी भाषा की बुन्देली, बघेली, बृज, अवधि, भोजपुरी में समस्त रस-छंद अलंकार, नज़्म एवं ग़ज़ल हेतु उर्दू फ़ारसी भाषा के शब्द संयोजन
विशेष – स्वरचित रचना विचारों हेतु विभाग उत्तरदायी नहीँ है.. इनका संबंध स्वउपजित एवं व्यक्तिगत है


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉🏻 hindi rakshak manch 👈🏻 … हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *